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वर्षका लेखा-जोखा

हत्याएँ बढ़ गई हैं। पुलिस कुछ कर नहीं सकती और भारतीयोंमें अपना बचाव करनेकी ताकत है, ऐसा जान नहीं पड़ता । इन तथ्योंसे प्रकट होता है कि भारतीय स्वतन्त्र नहीं हैं उनमें स्वतन्त्र होनेकी योग्यता भी नहीं है । कारण, वे अपने जान-मालको रक्षाके लिए दूसरोंपर निर्भर रहते हैं । उनमें शिक्षाकी कमी है। एक तरफ सरकार शिक्षाके साधन छोनती जा रही है । हायर ग्रेड स्कूलोंकी हालत खराब है। दूसरी तरफ हम स्वयं अपनी शिक्षाकी कोई व्यवस्था नहीं करते, और पुस्तकालय-जैसी संस्था बन्द हो जाती है, तो भी परवाह नहीं करते। सन्तोषकी बात इतनी ही है कि कुछ युवकोंको उनके माँ-बापने शिक्षाके लिए इंग्लैंड भेज दिया है । इसमें माँ-बापने तो अपना कर्तव्य पूरा कर दिया; किन्तु यह कोई भी नहीं कह सकता कि उनका क्या बनेगा. • घड़ा या गगरा; अभी तो मिट्टीका लोंदा चाकपर चढ़ा है।

केप में सब मामला ठण्डा दिखाई देता है । वहाँ भारतीयोंको जो मौका है उसे वे खो रहे हैं । वहाँ दो विरोधी दल हैं; वे आपस में लड़ते रहते हैं । इस स्थिति से तीसरा पक्ष, जो दोनोंका शत्रु है लाभ उठा सकता है। वहाँका व्यापारिक कानून और प्रवासी कानून बहुत हानिकर हैं। वहाँ भी आन्तरिक स्थिति दयनीय है।

रोडेशिया में ट्रान्सवाल-जैसा कानून बननेका खतरा था । वह खतरा बिलकुल मिटा तो नहीं है, किन्तु उसपर साम्राज्य सरकारकी मंजूरी मिलनेकी बहुत कम सम्भावना है।

डेलागोआ - बेकी हालत वैसी ही खराब है, जैसी वहाँकी हवा । भारतीय समाज सो रहा है । वहाँ जो कानून बनाया जाता है वह कैसा है, यह कोई पूछनेवाला दिखाई नहीं देता । वहाँ लोगोंका विचार यह दिखाई देता है कि अपना व्यापार ठीक चलता रहे और हमें पैसा मिलता रहे, इतना काफी है ।

ऐसा जान पड़ता है कि ऑरेंज रिवर कालोनी में भारतीय नहींके बराबर हैं । वहाँकी स्थितिमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है । फेरफार कब होगा, यह भारतीयोंके हाथमें है ।

ऐसा जान पड़ता है कि सबकी बाजी ट्रान्सवालके हाथमें है। नेटाल और ट्रान्सवालमें कानून बननेसे रुका, इसका मुख्य कारण ट्रान्सवालका संघर्ष ही माना जा सकता है । इस संघर्षने अब ऐसा रूप लिया है कि उसकी प्रशंसा सारे संसारमें हो रही है। भारतीय समाजकी प्रतिष्ठा बहुत बढ़ गई है । भारतके नगर-नगरमें ट्रान्सवाल [ के भारतीयों की स्थिति ] के सम्बन्ध में सभाएँ की जा रही हैं । इंग्लैंड में भी चर्चा चल रही है। चार महीने में लगभग दो हजार लोग जेल जा चुके हैं। लोग तकलीफें बर्दाश्त करने में बहादुरी दिखा रहे हैं । और चारों ओरसे उनको संघर्षके लिए शाबाशी मिल रही है । लोगोंको नया हथियार मिला है। उनमें नया बल आया है । हमें इस बलकी विशेषता अभी दिखाई नहीं दी है। जनरल स्मट्सने दगा की है, लेकिन चूँकि भारतीय सत्याग्रही हैं, इसलिए उनकी यह दगा भी फायदेमन्द हो गई है। यह सत्यकी विशिष्टता है। उसके सम्मुख असत्य झुकता है, क्योंकि वह सत्यके मुकाबले टिक नहीं सकता। इसके अलावा लड़ाई ज्यों-ज्यों लम्बी होती जाती है त्यों-त्यों लोग ज्यादा जोर पकड़ते जाते हैं। लड़ाईके दूसरे तरीकोंसे लोग हमेशा अखीरमें कमजोर हो जाते हैं । इसका कारण यही है कि सत्यका सेवन करनेसे कमजोरी आ ही कैसे सकती है ! वे उसका सेवन जितना करेंगे, उनका बल उतना ही बढ़ेगा ।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, २६-१२-१९०८