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८५. हिन्दू-मुस्लिम दंगा

कलकत्तामें हिन्दू और मुसलमान लड़ पड़े, यह खबर तारसे रायटरने दी है। कहा जाता है कि इसमें कुछ लोग मारे भी गये हैं । कुछ हिन्दुओंने मसजिदपर आक्रमण किया था; इससे मुसलमान भड़क उठे। उन्होंने विरोध में आक्रमण किया। सरकारी सेना बीचमें आई । खबरसे जान पड़ता है कि दंगा अभी दवा नहीं है। खबर में क्या सच है और क्या झूठ, यह कोई नहीं जान सकता । किन्तु यह तो प्रतीत होता ही है कि इस झगड़ेका कारण कोई गोरा अधिकारी है । ऐसी कोई बात दिखाई नहीं देती जिसके कारण हिन्दुओं और मुसलमानोंको आपस में लड़ना पड़े। अधिकारी अदूरदर्शितावश समझते हैं कि दोनों कौमों में तकरार होने में उनका लाभ है । इस समय भारत में स्थिति ऐसी गम्भीर है कि यदि दोनों कौमें लड़ मरें तो, बहुत-से अधिकारियोंका खयाल है, सरकार निश्चिन्त होकर बैठ सकती है। यह विचार करना चाहिए कि इस समय विदेशोंमें रहनेवाले भारतीयोंका क्या कर्तव्य है । हमें यह स्पष्ट दिखाई देता है कि हम चाहे हिन्दू हों या मुसलमान, हमें किसी भी पक्षका समर्थन न करना चाहिए। एक तीसरे पक्षने हममें झगड़ा कराया है, यह समझकर हमें अपने देशमें अपने लोगोंके बीच विरोध होनेपर दुखी होना चाहिए और खुदा या परमात्मासे मसजिदों और मन्दिरों में प्रार्थना करनी चाहिए कि "हमारे देशमें हम लोगोंके बीच बार-बार जो झगड़े हो जाते हैं वे समाप्त हो जायें । " इसी में भारतका कल्याण है। हमें विश्वास है, प्रत्येक देशभक्त भारतीय ऐसा मानेगा ।

हम जिस सत्याग्रहकी लड़ाई लड़ रहे हैं वह लगभग सभी मामलोंमें लागू किया जा सकता है। हमें यह समझकर निश्चिन्त रहना चाहिए कि यदि कौमोंके बीच झगड़े हों तो उनको शान्त करनेके लिए भी इस शस्त्रका उपयोग किया जा सकता है ।

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, ९-१-१९०९

८६. वैंकूवरके भारतीय

कैनडा में वैंकूवरके भारतीय पर्याप्त दृढ़ताका परिचय देते मालूम हो रहे हैं । वहाँकी सरकारने उन्हें [ वहाँ से ] निकाल कर मलेरियावाले प्रदेशमें बसानेका जाल रचा था, किन्तु वे उसमें फँसे नहीं। और अब वे ब्रिटिश होंडुरास जानके बजाय वैंकूवरमें ही रहनेवाले हैं । उनकी ओरसे होंडुरास प्रदेशका निरीक्षण करनेके लिए जो दो भारतीय गये थे, उन्होंने बताया है कि होंडुरासमें भारतीय रह ही नहीं सकते । उनका कहना है कि उन्हें रिश्वतका लालच दिया गया था, ताकि वे झूठी रिपोर्ट दें, किन्तु उन्होंने रिश्वतकी परवाह नहीं की। उन्होंने अपनी दृष्टि अपने भाइयोंके हितपर ही रखी। दोनों भारतीय बधाईके पात्र हैं ।

वैंकूवरके भारतीय ऐसे-वैसे नहीं हैं । हालमें इसका दूसरा उदाहरण भी हमारे सामने आया है । वहाँके अखबारोंमें एक समाचार प्रकाशित हुआ है कि प्रोफेसर तेजमाल सिंहने,