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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

माँ-बाप इस हिसाबसे सामान भेज सकते हैं अथवा हम खरीद देनेके लिए तैयार हैं। कपड़ों और कम्बलों वगैरहका खर्च माँ-बापकी मर्जीपर छोड़ते हुए हिसाब यह लगाया गया है कि मां-बापको हर महीने एक गिन्नीका खर्च उठाना पड़ेगा। प्रवेश शुल्क प्रति बालक एक पौंड रखा जायेगा। यह शुल्क बच्चेके वास्ते जरूरी किताबें लेनेके लिए है। उतनेकी किताबें ली ही जायेंगी, यह आवश्यक नहीं है। किन्तु पाठशालामें भी बच्चोंपर दूसरे फुटकर खर्च होते हैं और वे इसी रकममें से चलाने हैं। आगे बढ़े हुए बच्चोंके लिए जो किताबें जरूरी जान पड़ें वे मां-बापको लेनी होंगी।

शिक्षक

ऊपर जो-कुछ लिखा है, उससे स्पष्ट हो जायेगा कि हमने कोई मासिक शुल्क नहीं रखा है। ऐसा करनेका कारण केवल यह है कि शिक्षकोंकी जीविका छापेखाने [ इंटरनेशनल प्रिंटिंग प्रेस ] से जो-कुछ मिलता है, उससे चल जाती है। और छापेखानेकी मंजूरीसे हरएक शिक्षक एक निश्चित समयपर पढ़ाने आता है। हालमें पाठशालाके लिए एक समिति बनानेकी योजना भी की गई है। उस समितिमें शिक्षा पद्धति वगैरहके सम्बन्ध में विचार हुआ करेगा ।

शिक्षकोंमें श्री पुरुषोत्तमदास देसाई (प्रिंसिपल), श्री वेस्ट, श्री कॉर्डिस, कुमारी वेस्ट आदि हैं।

पढ़ाई

इस पाठशालाका मुख्य उद्देश्य बच्चोंके चरित्रका विकास करना है। कहा जाता है कि सच्ची शिक्षा वह है जिसमें बालक स्वयं पढ़ना सीखें, अर्थात् उनमें ज्ञान प्राप्त करनेकी इच्छा उत्पन्न हो । अब, ज्ञान तो बहुत तरहका होता है। कुछ ज्ञान हानिकर भी होता है। तब यदि

बालकोंके चरित्रका निर्माण न हो तो वे औंधा ज्ञान सीखने लगते हैं। हम देखते हैं कि शिक्षा मनमाने ढंगसे दी जाने के कारण ही कुछ लोग नास्तिक हो जाते हैं और कुछ बहुत पढ़-लिख जानेपर भी बुराइयोंमें फँस जाते हैं। इसलिए बालकोंके चरित्रको दृढ़ करने में सहायता देना इस पाठशालाका मुख्य हेतु है। इस हेतुकी परिणति श्री हसन मियाँ और श्री रविकृष्णमें दिखाई देती है। श्री हसन मियाँ इंग्लैंडमें जाकर जो कुछ कर रहे हैं, हम उसकी कुछ कल्पना कर सकते हैं। श्री रविकृष्ण आज देशकी खातिर जेल भोग रहे हैं। ये दोनों फीनिक्सकी पाठशालासे गये हैं । बालकोंको उनकी अपनी भाषा, अर्थात् गुजराती या हिन्दी और सम्भव हो तो तमिल और अंग्रेजी, अंकगणित, इतिहास, भूगोल, वनस्पति विज्ञान और प्रकृति-विज्ञान भी पढ़ाये जायेंगे । ऊँची कक्षाओं में बालकोंको बीज गणित और रेखागणित भी पढ़ाया जायेगा। अनुमान है कि इस तरह मैट्रिक्युलेशन तक की तैयारी हो सकती है।

धर्म-शिक्षाके लिए माँ-बाप चाहे जिस धर्म-गुरुको भेज सकते हैं। हिन्दू बालकोंको हिन्दू माँ-बापोंकी मर्जीके मुताबिक हिन्दू धर्मके मूल तत्त्वोंकी शिक्षा दी जायेगी । भारतीय ईसाई बालकोंको ईसाई धर्मके तत्त्वोंकी शिक्षा श्री वेस्ट और श्री कॉडिस देंगे। यह शिक्षा थियाँ- सफीकी शिक्षाओंपर आधारित होगी । इस्लाम माननेवाले बालकोंके लिए यदि किसी मौलवीकी व्यवस्था हो सके तो हम करना चाहते हैं। मुसलमान बालकोंको शुक्रवारको डर्बन जानेकी छूट दी जायेगी। हमारा खयाल हैं कि किसी भी समाजकी शिक्षा उसके धर्मकी शिक्षाके बिना निकम्मी है, अतः धार्मिक वृत्तिके माता-पिताओंका कर्तव्य है कि वे अपने बालकोंको धर्मको