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उच्चतर विद्यालय

शिक्षा और लौकिक शिक्षा, दोनों साथ-साथ दें। गहराईसे सोचें तो मालूम होगा कि हम जिसको लौकिक शिक्षा कहते हैं वह भी धर्मको दृढ़ करनेवाली तालीम ही है । हमारे विचारमें इस उद्देश्य से हीन शिक्षा प्रायः हानिकर होती है ।

बालकोंके मनमें भारतके प्रति प्रेम उत्पन्न करने और उनको देशभक्त बनने में सहायता देनेके लिए भारतका प्राचीन और अर्वाचीन इतिहास पढ़ाया जायेगा ।

इसके बाद बताने लायक कुछ नहीं रहता। हमें आशा है कि जो अपने बालकोंको पाठशालामें भेजना चाहते हों, वे उन्हें भेजेंगे। मकानकी दिक्कत है; उसको दूर करना माता-पिताका कर्तव्य है। यह बताने की जरूरत नहीं कि पाठशालाके विवरण, खर्च आदि नियमपूर्वक प्रकाशित किये जायेंगे ।

[ गुजराती से ]
इंडियन ओपिनियन, ९-१-१९०९

८८. उच्चतर विद्यालय

सरकारका इरादा स्पष्टतः यह है कि भारतीय लड़कोंको उच्चतर विद्यालयों (हायर ग्रेड स्कूलों) और अन्य सरकारी स्कूलोंसे धीरे-धीरे निकाल दिया जाये । इसका उपाय अपनी खुदकी पाठशालाएँ खोलना है, यह तो हम बता ही चुके हैं; और फीनिक्सकी पाठशालाके सम्बन्धमें भी यह बात कह चुके हैं।[१] फिर भी, सरकारका विरोध करना तो जरूरी है। सरकारका विरोध करने और न्याय प्राप्त करनेके दो मार्ग हैं ---एक तो न्यायालयके द्वारा और दूसरा, प्रार्थनापत्र आदिके द्वारा । न्यायालयके द्वारा हमारे लिए रास्ता है या नहीं, यह भली भाँति विचार किये बिना नहीं कहा जा सकता। एक बार अर्जी दी गई थी, उसे सर्वोच्च न्यायालयने खारिज कर दिया, इस बातसे कोई विशेष अनुमान बाँधा नहीं जा सकता । इसलिए किसी अच्छे वकीलसे मामलेको समझकर उसकी सलाह हो तभी कानूनके अनुसार लड़ना उचित है। यदि ऐसा करना सम्भव न हो, तो प्रार्थनापत्र देना चाहिए, और बड़ी सरकार तक जाना चाहिए। मगर यह सब करने के पीछे जोर तो चाहिए ही । वह जोर सत्याग्रहके द्वारा आजमाया जा सकता है । यह कैसे हो सकता है, इसका विचार यहाँ करनेकी आवश्यकता नहीं है। यह विवेचन बादमें किया जा सकेगा। इस बीच नेताओंको ऊपर बताये उपाय जितनी जल्दी सम्भव हो, करने चाहिए।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ९-१-१९०९
 
  1. देखिए पिछला शीर्षक ।