पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/१८

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बारह

गांधीजीके मनमें ट्रान्सवालके संघर्षके व्यापकतर परिणामोंका बिल्कुल स्पष्ट चित्र था । भारतकी जनता द्वारा संघर्षके व्यापकतर महत्त्वको समझनेगें देरका कारण, गांधीजीके अनुसार, आंशिक रूपसे उनका आत्म-शक्तिका अज्ञान था । उनकी निश्चित धारणा थी कि "क्या वे यह नहीं देख सकते कि ट्रान्सवालमें चलनेवाले प्रयत्नों और तदनुरूप भारतमें किये जानेवाले प्रयासोंका स्वरूप ही ऐसा है कि वे भारतको उसके लक्ष्यके अधिकाधिक निकट ले जायेंगे, और सो भी बहुत विशुद्ध तरीकेसे ?” ( पृष्ठ ४६२ ) । पोलकको लिखे अपने एक पत्र में उन्होंने हैरत प्रकट करते हुए पूछा कि "क्या वे नहीं देख सकते कि इस लड़ाईके द्वारा हम मातृभूमि भारतकी सेवामें भविष्यके लिए एक अनुशासित सेना तैयार कर रहे हैं । यह सेना ऐसी होगी जो बड़ीसे-बड़ी वहशी ताकतका सामना होनेपर भी अपना जौहर दिखा सकेगी (पृष्ठ ४६२) । हिंसात्मक तरीकोंसे भारतकी स्वतंत्रता-प्राप्ति गांधीजी असम्भव और अवांछनीय मानते थे । उन्होंने पोलकके माध्यमसे अतिवादियोंको बताया कि "वे जो स्वतन्त्रता चाहते हैं, या उनका खयाल है कि उन्हें जिसकी जरूरत है, वह स्वतन्त्रता लोगोंको मारने या हिंसा करनेसे न मिलेगी ।" (पृष्ठ ४८० )

यह काल इस दृष्टिसे भी महत्त्वपूर्ण है कि गांधीजीने इसी समय रूसी विचारक काउंट लियो टॉल्स्टॉयसे सम्पर्क स्थापित किया । टॉल्स्टॉयको गांधीजीने "इस सिद्धान्तका सबसे श्रेष्ठ और प्रसिद्ध व्याख्याकार" माना । सत्याग्रह आन्दोलनके बारेमें टॉल्स्टॉयको गांधीजीने लिखा: “मेरी रायमें ट्रान्सवालमें भारतीयोंका यह संघर्ष आधुनिक युगका सबसे महान संघर्ष है । . . . यदि यह आन्दोलन सफल होता है तो वह न सिर्फ अधर्म, असत्य और विद्वेषपर धर्म, सत्य और प्रेमकी विजय होगी, बल्कि बहुत सम्भव है कि वह भारतके लाखों-करोड़ों निवासियों और दुनियाके दूसरे हिस्सोंमें बसनेवाले पददलित लोगोंके लिए एक अनुकरणीय उदाहरण होगा ।” (पृष्ठ ५३४) टॉल्स्टॉयने “ट्रान्सवालके अपने प्यारे भाइयों और सहयोगियोंके लिए ईश्वरीय सहायता मिलनेकी कामना व्यक्त की, और रूसमें भी “कठोरतासे कोमलताके, दर्प और हिंसासे विनम्रता व प्रेमके ठीक उसी संघर्ष" का जिक्र किया । (पृष्ठ ४८२-८३) ।

इस खण्ड में हम आधुनिक सभ्यताके बारेमें गांधीजीके विचारोंको स्पष्ट होते हुए देखते हैं । मणिलाल गांधी को लिखे अपने पत्रों में और 'इंडियन ओपिनियन' को लिखे गये अपने संवादपत्रोंमें वे इस विषयकी चर्चा करते हैं । किन्तु पोलकको लिखे गये अपने अक्तूबर १४ के पत्र में उन्होंने अपने उन "निश्चित निष्कर्षो" को स्पष्ट रूपसे व्यक्त किया जो उन्हें "सत्याग्रहकी सच्ची भावना" से प्राप्त हुए थे, और जिन्हें उन्होंने शीघ्र ही अपनी पुस्तक 'हिन्द स्वराज्य' में विस्तारसे लिखा । यह पुस्तक उन्होंने इंग्लैंडसे दक्षिण आफ्रिका वापस लौटते हुए जहाजपर लिखी ।

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