गांधीजीने जनमत तैयार करनेके लिए अभियान शुरू करते हुए ब्रिटेनके समाचारपत्रोंमें अपना १६ जुलाईका “वक्तव्य" प्रकाशनार्थ भेजा, जिसे वे अबतक लॉर्ड ऍम्टहिल के कहनेसे रोके हुए थे । उन्होंने इमर्सन क्लब, इंडियन सोशल यूनियन, और इंडियन यूनियन सोसाइटी द्वारा आयोजित सभाओं में भाषण किये, जिनमें उन्होंने ट्रान्सवालके संघर्षका स्वरूप समझाया और जनता से उसका समर्थन करनेका अनुरोध किया । गांधीजीने ट्रान्सवालके सत्याग्रहियोंसे सहानुभूति रखनेवाले अंग्रेजोंकी ओरसे भेजे जानेवाले एक स्मरणपत्र ( मेमोरेंडम ) का मसविदा तैयार किया और उसपर हस्ताक्षर कराने और चन्दा जमा करनेके लिए भारतीय और अंग्रेज स्वयं सेवकोंकी सेना तैयार की । ट्रान्सवालके प्रवासी-कानूनके विषयमें उपनिवेश मन्त्रालयको लिखे गये अपने अन्तिम पत्रमें उन्होंने आशा व्यक्त की कि रंगभेदका कलंक दूर करानेके लिए आगे भी लॉर्ड क्रू अपने प्रभावका उपयोग बराबर करते रहेंगे ।
नवम्बर १० को गांधीजीने 'डेली एक्सप्रेस' के संवाददाताको बताया कि सत्याग्रह पूरे उत्साहके साथ जारी रहेगा । अगले दिन उन्होंने ब्रिटेनके समाचारपत्रोंसे अपील की कि वे ट्रान्सवालके संघर्षको अपना समर्थन प्रदान करें । नवम्बर १२ को अपनी विदाईके अवसरपर आयोजित एक सभामें उन्होंने ब्रिटेनके नेताओंसे अनुरोध किया कि वे ट्रान्सवालके आन्दोलनको उदार दृष्टिसे समझनेका प्रयत्न करें ।
इस तमाम अवधि में उनके दिमागमें सत्याग्रहका वास्तविक रूप घूम रहा था । उनके लेखों, भाषणों और पत्रोंमें सत्याग्रह-सम्बन्धी उनके विचार भरे पड़े हैं । जर्मिस्टनमें बोलते हुए उन्होंने कहा कि "अनाक्रामक प्रतिरोध" तो गलत नामकरण है । इसके पीछे जो विचार है वह "आत्म-बल" शब्दसे ज्यादा ठीक ढंगसे अभिव्यक्त होता है । यह " उतना ही पुराना है जितना पुराना इन्सान" और ईसा मसीह, डैनियल और सुकरात-जैसे लोगोंने इसका शुद्धतम रूपमें प्रयोग किया है । यह "आत्मबल मन्दिर आदि स्थानोंमें जाने-जैसे बाहरी उपचारोंमें बिल्कुल नहीं हैं । सत्य और अभयको विकसित करना उसका पहला पाठ है" (पृष्ठ ३९२) । कष्ट-सहन उसमें सन्निहित है । "सत्याग्रही ज्यों-ज्यों कूटा जाये त्यों-त्यों उसका तेज प्रखर हो और उसकी हिम्मत भी बढ़े" (पृष्ठ ४४६) ।
सत्याग्रहके तरीकेको गांधीजी "जीवनकी बहुत-सी बुराइयोंकी अचूक दवा मानते थे (पृष्ठ ३६२) । उनके विचारमें "किसी घोर अन्यायके विरुद्ध सीधा, सरल और शीघ्र न्याय पानेका मार्ग सत्याग्रह ही था । (पृष्ठ ४४६) । उनका विश्वास था कि दक्षिण आफ्रिकामें कुल मिलाकर सत्याग्रह विफल नहीं हुआ । जून १९०९ में भेदभावकी व्यवस्था करनेवाले कानूनके विरुद्ध उसकी सफलताको उन्होंने उदाहरण के रूपमें बताया । ट्रान्सवालके भारतीयोंकी तरफसे लॉर्ड क्रू ने जो-कुछ कोशिश की थी उसका कारण भी, गांधीजीके अनुसार, भारतीयों द्वारा स्वेच्छासे कष्ट-सहन करना ही था । प्रबुद्ध वर्गोंमें शिष्टमण्डलने जो सहानुभूतिकी भावना उत्पन्न की थी उसकी झलक पादरी मायर द्वारा "विशुद्धतामें बेजोड़ और अत्यन्त निःस्वार्थ भावसे चलाये जानेवाले उस संघर्ष" के अनुमोदनमें मिलती है (पृष्ठ ५४५) ।
लन्दनमें अपने अति व्यस्त कार्यक्रमके बावजूद गांधीजी भारतमें पोलकके साथ बराबर सम्पर्क बनाये रहे । उनके लम्बे-लम्बे पत्रोंसे, जिन्हें वे बहुत सुबह बोलकर लिखवाते थे, पूरी नीतिपर उनकी पकड़, छोटी-छोटी तफसीलोंका ध्यान रखनेकी क्षमता और सभी मामलों में मानवीय तत्वके प्रति चिन्ता प्रकट होती है ।
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