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१०७. पत्र : लॉर्ड कर्जनको

[ जोहानिसबर्ग ]
जनवरी २७, १९०९

सेवामें

परममाननीय लॉर्ड कर्जन
[१]

जोहानिसबर्ग
महानुभाव,

मैं आपके इसो २६ तारीखके उस पत्रकी[२] पहुँच सादर स्वीकार करता हूँ जो मेरे संघके तारके[३] जवाबमें भेजा गया है। तारमें आपसे प्रार्थना की गई थी कि सरकार और जिस समाजका मेरा संव प्रतिनिधित्व करता है उसके बीच इस समय दुर्भाग्यसे जो संघर्ष चल रहा है, उसके सम्बन्ध में आप एक शिष्टमण्डलसे मिलना मंजूर करें ।

ट्रान्सवालवासो ब्रिटिश भारतीयोंके मामले में इतनी दिलचस्पी लेनेके लिए मेरा संघ महानुभावका बहुत अहसानमन्द है । संघको दुःख है कि आप यहाँ बहुत कम ठहरेंगे; इस वजह से उसको आपके प्रति सम्मान प्रकट करनेके लिए आपकी सेवामें शिष्टमण्डल भेजनेका मौका न मिल सकेगा ।

मैं अब इस पत्रके साथ इस वक्त जैसी हालत है उसका बहुत संक्षिप्त विवरण, सर चार्ल्स ब्रूस द्वारा प्रकाशित एक पुस्तिका,[४] जिसमें स्थितिका काफी अच्छा सार दे दिया गया है, और महामहिमको सरकारको उपनिवेश मन्त्रीको मार्फत दी गई अर्जी[५] [ की नकल ] भेज रहा हूँ ।

ट्रान्सवालमें इस खास मामले में संघको सहायता करनेके लिए प्रभावशाली यूरोपीयोंकी एक समिति बना दी गई है; इसलिए मैंने महानुभावका पत्र उस समितिके अध्यक्ष श्री हॉस्केन- को[६] दिखा दिया है। मुझे मालूम हुआ है कि वे भी आपको एक पत्र लिख रहे हैं। अगर महानुभाव और ज्यादा जानकारी चाहें तो मेरा संघ खुशीसे भेजेगा।

  1. (१८५९-१९२५); भारतके वाइसराय और गवर्नर जनरल, १८९९-१९०५; ब्रिटेनके विदेश मन्त्री, ११९९-१९२४
  2. लॉर्ड कर्ज़नने लिखा था, "मैं जोहानिसबर्गमें अभी आया हूँ और मेरे पास बहुत कम वक्त हैं । मैं यहाँ कल तमाम दिन व्यस्त रहूँगा, पूरा गुरुवार बाहर बीतेगा और शुक्रवारकी सुबह चला जाऊँगा । इसलिए मेरा खयाल है कि मैं शिष्टमण्डलसे नहीं मिल सकता। लेकिन अगर आपका संघ गुरुवार की शाम तक अपने मामलेका भरसक पूरा विवरण तैयार करके दे देगा तो मैं रास्ते में उसका अध्ययन करूंगा । "
  3. यह उपलब्ध नहीं है ।
  4. यह प्राप्त नहीं है, इससे पहले शीर्षककी पाद-टिप्पणी भी देखें ।
  5. देखिए "प्रार्थनापत्र: उपनिवेश मन्त्रीको ", पृष्ठ १७-२८ ।
  6. उन्होंने यूरोपीय समितिके प्रधानकी हैसियतसे ६ जनवरीको लन्दनके टाइम्सको एक पत्र लिखा था, जिसकी एक नकल एल० डब्ल्यू० रिचने उपनिवेश मन्त्रीको भी भेज दी थी । देखिए परिशिष्ट ११ ।