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१०९. पत्र : श्रीमती चंचलबेन गांधीको

गुरुवार [ जनवरी २८, १९०९]

[१]

चि० चंचल,

बहुत दिन बाद तुम्हारा पत्र मिला। मैं देखता हूँ, तुम्हारा मन अव्यवस्थित है। इससे मुझे दुःख होता है। फिर भी तुम्हारी आन्तरिक भावनाओंको ही हमेशा जानना चाहता हूँ । मैं दुःखी हूँगा, इस खयालसे तुम्हें अपनी भावनाएँ कभी छुपानी न चाहिए ।

तुम पोहरके बाहर हो, यह मानती हो, सो ठीक नहीं है। मैं तुम्हें बहू नहीं, पुत्री ही समझता हूँ । यदि बहू समझता तो तुम्हें बच्ची मानता । पुत्री समझता हूँ, इसलिए तुम्हें बच्ची मानना नहीं चाहता। तुम्हारे लिए मेरे मनमें कितना स्नेह है, यह तुम नहीं समझ सकी। नहीं समझ सकती, यह मैं समझता हूँ | मैं जैसे मणिलालको बालक मानना नहीं चाहता, वैसा ही तुम्हें अपने बारेमें भी समझना चाहिए। यदि मैंने तुमसे श्वसुर बहूका सम्बन्ध रखा होता, अर्थात् यदि अन्तर रखा होता तो मैं अपने स्वभावके अनुसार पहले तो तुम्हारे मनको जीतनेका प्रयत्न करता और जब तुम्हारे मनमें अभेद-बुद्धि पैदा होती, तभी मैं तुमसे खुलकर काम लेता । किन्तु मैंने मान लिया था कि जब तुम्हारा सम्बन्ध रिलालके साथ हुआ, उससे पहलेसे मैंने तुम्हें लड़की समझकर गोदमें खिलाया है,[२] इसलिए तुम श्वसर- बहूका सम्बन्ध भूल जाओगी। उसे तुमने नहीं भुलाया। अब प्रयत्न करना ।

मैं ऐसा बरताव कर ही नहीं सकता जिससे तुम्हारा अकल्याण हो अथवा तुम्हें कोई कष्ट हो । भारतमें वियोगको अवस्थाम कल्याण माननेवाली स्त्रियां बहुत हुई हैं। दमयन्ती नलसे वियुक्त होकर अमर हो गई। तारामती हरिश्चन्द्र से अलग हुई तो उससे दोनोंका कल्याण हुआ। द्रौपदीका वियोग पाण्डवोंको सुखद हुआ और द्रौपदीकी दृढ़ताकी सराहना तो समस्त हिन्दू जाति करती है । तुम्हें यह न समझना चाहिए कि ये घटनाएँ हुईं ही नहीं । बुद्धदेव पत्नीका त्यागकर अमर हो गये और उनकी पत्नी भी अमर हुईं। ये उदाहरण छोरके आत्यन्तिक - हैं। इनसे मैं तुम्हें इतना ही बताना चाहता हूँ कि तुम्हारे वियोग से तुम्हारा अकल्याण न होगा। वियोगसे तुम्हारे चित्तको दुःख होता है, यह स्वाभाविक है। यह प्रेमका लक्षण है। परन्तु उससे तुम्हारा अकल्याण ही होगा, ऐसी बात नहीं है। कल्याण या अकल्याण वियोगके हेतुपर निर्भर होता है। बाका और मेरा वियोग लगभग अनिवार्य था, अर्थात्, उसे मैंने नहीं चुना था, फिर भी वह हम दोनोंके लिए कल्याणकर सिद्ध हुआ। यह उदाहरण देकर मैं तुम्हारे मनमें यह जमाना नहीं चाहता कि तुम्हें वियोग सदा सहना है । लड़ाईके दिनोंका वियोग तुम्हें कष्ट न दे, इस कारण मैं यह लिख रहा हूँ। लड़ाई खत्म होनेके बाद मैं तुम्हारे वियोगका कारण कम ही हूँगा। फिर भी यह तुम्हारे मनको वृत्ति बदलनेका प्रयत्न है। जब तुम समझ लोगी और तुम्हें इसकी आदत पड़ जायेगी तो यह बात भी हो जायेगी ।

  1. यह पत्र पिछले २७-१-१९०९ को हरिलाल गांधीके नाम लिखे पत्रके बादका लिखा जान पड़ता है। उक्त पत्रमें गांधीजीने संघर्षके दौरान श्री हरिलाल गांधीसे चंचलबेनके अलग रहनेकी बात लिखी थी ।
  2. चंचलवेनके पिता श्री हरिदास वोरा और गांधीजीमें घनिष्ठ मित्रता थी