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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

लेकिन बहुत सावधानी से जांच करनेपर [ कहा जा सकता है कि ] ब्रिटिश भारतीय संघकी पूरी कार्यकारिणी एक रहकर, सत्याग्रहपर तबतक कायम रहेगी जबतक न्याय नहीं किया जाता।[१]

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस० एन० ४९१६-१७) से ।

१०८. पत्र : हरिलाल गांधीको

बुधवार [ जनवरी २७, १९०९]

[२]

चि० हरिलाल,

तुम्हारा पत्र मिला। देखता हूँ कि तुम दुःखी हो । तुम्हें वियोगसे[३] सुख मिलेगा या नहीं, इस सम्बन्धमें मुझे तुम्हारा मत स्वीकार करना ही चाहिए। फिर भी मैं इतना तो देख ही सकता हूँ कि तुम्हें लम्बे अर्सेतक जेल भोगनी पड़ेगी। इस विषयमें तुम्हारा विचार जानना चाहता हूँ । साफ-साफ लिख भेजो। जान पड़ता है, लड़ाई लम्बी खिंचेगी। इसके जल्द खत्म होनेके भी कुछ आसार दिखाई पड़ते हैं। सम्भव है, लॉर्ड कर्जन हस्तक्षेप करें । तुम्हारी गैरहाजिरोमें चंचोको बाबत क्या इन्तजाम करना चाहिए, यह भी लिखना । विशेष समय मिलनेपर लिखूंगा ।

तुमने "पाई देकर पत्थर लेने " की जो बात कही है, वह मैं समझ नहीं सका। वह तुमने किस सिलसिलेमें लिखी है ?

शायद तुम्हारे ५ तारीखसे पहले यहाँ आने की जरूरत न होगी ।

मोहनदासके आशीर्वाद

[पुनश्च : ] 'भागवत का पाठ हुआ या नहीं?

गांधीजी के स्वाक्षरोंमें मूल गुजराती प्रतिको फोटो-नकल (एस० एन० ९५३३) से।

  1. लॉर्ड कर्ज़नने २ फरवरी १९०९ को जवाब देते हुए लिखा था कि जनरल बीधा और स्मटससे जो बातचीत हुई उसमें मुझे ब्रिटिश भारतीयोंसे उदारता और न्यायका बरताव करनेका विश्वास दिलाया गया है । मुझे लगता है कि इस मामलेपर बादमें एक बड़े सवालके रूप में साम्राज्य सरकार और संघ सरकारके बीच लिखा-पढ़ी होगी । देखिए परिशिष्ट १२ ।
  2. तारीखका निश्चय लॉर्ड कर्जनके सम्भावित हस्तक्षेप के उल्लेखके आधारपर किया गया है; देखिए "पत्र : लॉर्ड कर्तनको", पृष्ठ १७१-७२ । लॉर्ड कर्जनने स्मट्स और बीधाके साथ अपनी बातचीतके परिणामोंसे गांधीजीको अपने २ फरवरीके पत्र द्वारा अवगत कराया था ।
  3. देखिए “पत्र : श्रीमती चंचलबेन गांधीको, " पृष्ठ १५१-५२ ।