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पत्र: मणिलाल गांधीको

मुझे आशा है, बा अब बिल्कुल अच्छी होंगी। मैं जानता हूँ कि तुम्हारे कई पत्र आये हैं; लेकिन वे मुझे दिये नहीं गये हैं। फिर भी डिपुटी गवर्नरने यह बतानेकी कृपा की है कि वे [ बा] अच्छी हो रही हैं। क्या वे अब आरामसे चलती-फिरती हैं ? मैं आशा करता हूँ कि वे और तुम सब सवेरे सागूदाना और दूध लेते रहोगे।

और चंची[१] कैसी है ? उससे कहो कि मैं उसे रोज याद करता हूँ। मुझे आशा है कि उसके सब घाव अच्छे हो गये होंगे और वह और रामी बिल्कुल ठीक होंगी। नाथूरामजीने[२] उपनिषदकी जो भूमिका लिखी है उसके एक प्रकरणका मुझपर बहुत प्रभाव पड़ा है। वे कहते हैं कि ब्रह्मचर्य आश्रम, अर्थात् पहला आश्रम अन्तिम, अर्थात् संन्यासाश्रमकी भाँति है। यह सत्य है । खेल-कूद केवल भोलेपनकी आयु तक, अर्थात् बारह साल तक रहता है। ज्यों ही किसी लड़केकी समझदारीकी आयु आती है, उसे अपने दायित्वका अनुभव करना सिखाया जाता है। प्रत्येक लड़केको इस आयुके पश्चात् विचार और कर्मसे ब्रह्मचर्यका, उसी प्रकार सत्य और अहिंसाका पालन करना चाहिए। उसके लिए इस ज्ञानको प्राप्त करना, उसपर आचरण करना कष्टप्रद न होना चाहिए, बल्कि बिल्कुल स्वाभाविक होना चाहिए। उसे उसमें सुख अनुभव करना चाहिए। मुझे स्मरण है कि राजकोटमें ऐसे कई लड़के थे। मैं तुम्हें बता दूं कि जब मैं तुमसे छोटा था तब मुझे अपने पिताकी सेवा करनेमें सबसे अधिक प्रसन्नता होती थी।[३] बारह वर्षकी आयुके बाद मेरा खेल-कूद बन्द हो गया था। यदि तुम इन तीन यमो पर[४] आचरण करो और यदि वे तुम्हारे जीवनका अंग बन जायें तो, जहाँ तक मेरा सम्बन्ध है, तुम्हारी शिक्षा और तुम्हारी दीक्षा पूरी हो जायेगी। मेरी बातपर विश्वास करो, उनसे सज्जित होकर तुम संसारके किसी भी भागमें अपनी आजीविका कमा सकोगे और उससे तुम्हारा आत्मज्ञान -- आत्मा और परमात्मा सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त करनेका मार्ग प्रशस्त हो जायेगा। इसका अर्थ यह नहीं है कि तुम्हें पुस्तकीय ज्ञान प्राप्त न करना चाहिए। उसे तो तुम्हें प्राप्त करना ही चाहिए, और तुम प्राप्त कर रहे हो । लेकिन यह एक ऐसी बात है जिसके बारेमें तुम्हें परेशान न होना चाहिए। इसके लिए तुम्हारे पास बहुत समय है और आखिर तुम्हें ऐसी शिक्षा मिलनी ही है, ताकि तुम्हारा प्रशिक्षण दूसरोंके लिए उपयोगी हो सके ।

याद रखो कि अबसे हमारे भाग्यमें गरीबी बदी है। इसका जितना खयाल करता हूँ उतना ही मैं यह अनुभव करता हूँ कि अमीर होनेसे गरीब होना ज्यादा बड़ी नियामत है । दौलतके फायदोंसे गरीबीके फायदे ज्यादा मीठे होते हैं ।

तुमने यज्ञोपवीत ले लिया है। मैं चाहता हूँ कि तुम उसके अनुरूप आचरण करो। ऐसा लगता है कि सूर्योदयसे पूर्व जगना विधिवत् सन्ध्या करनेके लिए लगभग अनिवार्य है। इसलिए नियमित समयपर कार्य करनेका प्रयत्न अवश्य करो। मैंने इस सम्बन्धमें बहुत विचार किया है और कुछ पढ़ा भी है। मैं स्वामीजीके[५] प्रचारसे सम्मानपूर्वक असहमति प्रकट करता हूँ। मेरे

  1. चंचलवेन गांधी ।
  2. सौराष्ट्रके पंडित नाथूराम शर्मा; धार्मिक वृत्तिके एक सज्जन और हिन्दू-तत्त्वज्ञानके अध्येता; उन्होंने गुजराती में उपनिषदोंका अनुवाद किया था ।
  3. देखिए आत्मकथा, भाग १, अध्याय ९ ।
  4. सत्य, अहिंसा और ब्रह्मचर्य ।
  5. हिन्दू धर्मके प्रचारक स्वामी शंकरानन्द, जिन्होंने १९०८-९ में दक्षिण आफ्रिकाका दौरा किया था।