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१४९. भाषण: अस्वात और क्विनकी स्वागत-सभामें[१]

जोहानिसबर्ग
जून २, १९०९

आज भारतीयों और चीनियोंकी इस सम्मिलित सभासे मेरे आनन्दका पार नहीं है, और मैं उसका वर्णन भी नहीं कर सकता। मैंने कल ही ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्षसे बात करके तय किया था कि श्री अस्वातको लेकर यहाँ आयें और यहाँसे श्री काछलियाके घर नाश्ते और चाय-पानीके लिए चलें। मैंने यह सोचा भी नहीं था कि मेरे भारतीय भाई और चीनी लोग इतनी बड़ी संख्या में हो जायेंगे। संघर्ष में आग लेनेवाले दो दल—चीनी और भारतीय—इस तरह इकट्ठे हुए, इसमें मुझे बहुत ही प्रसन्नता हुई है। श्री क्विन और अस्वात सरीखे हीरोंका ऐसा स्वागत किया जाना कम सराहनीय नहीं है। ये दोनों हीरे अपने-अपने समाजके सच्चे शुभचिन्तक और नेता हैं। मैं जैसे-जैसे संघर्षके सम्बन्ध में विचार करता हूँ, वैसे-वैसे यह विश्वास होता जाता है कि सदाचार और सद्गुणसे संघर्ष करनेमें अन्ततः जीत ही होगी। लड़नेवालोंकी संख्या चाहे जितनी हो या रहे, किन्तु हमने जो दो माँगें की हैं, वे तो मानी ही जायेंगी। इस लम्बी लड़ाईमें हमें जो दूसरी चीजें मिली हैं, यदि हम उनपर विचार करें तो हम देखेंगे कि हम आत्मत्याग और पारस्परिक सहयोगसे एक-दूसरेके ज्यादा पास आ गये हैं और ऐसा सहयोग बढ़ानेके लिए उत्सुक हैं। हमने अब अपने सम्मानकी रक्षा करना तथा दूसरोंको सम्मान देना सीख लिया है। मुझे तो लगता है कि यदि अब अन्य कुछ न मिले, तो भी निराश होनेकी कोई बात नहीं है, क्योंकि जो मिला है, वह कम नहीं है और अभी बहुत कुछ मिलेगा। सत्याग्रहियोंकी सेना छोटी है, किन्तु इसकी कोई चिन्ता नहीं। आप इतिहासमें देखेंगे कि सच्चे लड़नेवाले हमेशा कम ही होते हैं। इंग्लैंड और रूसकी लड़ाईमें "लाइट ब्रिगेड" में थोड़े ही लोग थे, फिर भी उनका नाम आजतक अमर है। इसी प्रकार यदि सब जगह नहीं तो कमसे कम दक्षिण आफ्रिकामें तो सत्याग्रहियोंका नाम अमर ही रहेगा। मैं नम्रतापूर्वक सलाह देता हूँ कि आप लोग श्री क्विन और अस्वातका अनुसरण करें और अन्ततक वैसा करते हुए सुखकी प्राप्ति करें।

[ गुजरातीसे ]
इंडियन ओपिनियन, ५-६-१९०९
 
  1. भारतीयों और चीनियोंकी यह सभा वेस्ट ऐंड हॉलमें श्री अस्वात और श्री क्विनके रिहा होनेपर उनके स्वागतार्थ की गई थी। इसमें गांधीजीने भाषण दिया था।