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मेरा जेलका तीसरा अनुभव [१]

बैठकर। इससे शाम होते-होते मेरी कमर दुखने लगती थी और मेरी आँखोंको भी कुछ नुकसान पहुँचा। कोठरीकी हवा खराब होती है, ऐसा तो मैंने हमेशा माना है। बड़े दारोगासे मैंने एक-दो बार कहा कि मुझे बाहर खोदने आदिका काम दिया जाये, और वैसा न हो सके तो मुझे कम्बल सीनेका काम खुली हवामें बैठकर करने दिया जाये। पर उसने दोनों बातें अस्वीकार कर दीं। मैंने इसकी जानकारी भी निदेशकको दी। अन्तमें डॉक्टरका हुक्म हुआ और मुझे कम्बल सीनेका काम खुली हवामें बैठकर करनेकी इजाजत मिल गई। यदि खुली हवामें काम करनेकी इजाजत न मिलती, तो मेरा खयाल है कि मेरी तबीयत ज्यादा बिगड़ती। यह हुक्म मिलनेमें कुछ अड़चनें भी आई, किन्तु उनका उल्लेख करनेकी जरूरत नहीं है। तो, हुआ यह कि मेरी खुराक बदलनेके साथ ही मुझे खुली हवामें काम करनेका मौका भी मिल गया। इससे दुहरा लाभ हुआ। जिस समय कम्बल सीनेका काम मुझे दिया गया था, उस समय मेरा ऐसा खयाल था कि एकको सीनेमें एक हफ्ता चला जायेगा और उसीमें मेरी जेलकी अवधि पूरी हो जायेगी। लेकिन वैसा नहीं हुआ और मैं पहला कम्बल सीनेके बाद एक जोड़ी कम्बल दो ही दिनमें सीने लगा। इसलिए उन लोगोंने मेरे लिए दूसरा काम ढूँढ़ा--जैसे, बनियाइनोंमें ऊन भरनेका, टिकट रखनेकी थैलियाँ सीनेका, आदि।

मैंने अनेक सत्याग्रहियोंसे कहा था कि यदि वे तबीयत बिगाड़कर जेलसे निकलते हैं, तो उनके सत्याग्रहमें कमी मानी जानी चाहिए; क्योंकि हम पर्याप्त धीरज रखें तो [जेलकी सारी मुसीबतोंका] इलाज कर सकते हैं। इसके सिवा, चिन्ता करनेसे भी तबीयत बिगड़ती है। सत्याग्रही तो जेलको महल मानेगा। मुझे इस विचारसे दुःख होता था कि कहीं मुझे खुद ही बिगड़ी तबीयत लेकर बाहर न निकलना पड़े। पाठकोंको याद रखना चाहिए कि मेरे लिए घीका जो हुक्म हुआ था उसे मैं स्वीकार नहीं कर सकता था, इसीलिए मेरी तबीयत सत्याग्रहमें बिगड़ी। किन्तु दूसरोंपर वह नियम लागू नहीं था। हरएक कैदी, जब वह जेलमें अकेला हो अपनी असुविधाएँ दूर करानेकी माँग कर सकता है। प्रिटोरियामें वैसा न करनेके लिए मेरे पास खास कारण था, इसीलिए केवल अपने लिए घीका हुक्म मैं स्वीकार नहीं कर सकता था।

(क्रमश:)

[गजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, २९-५-१९०९