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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

संकट है, वे जेल चले जायें तो उनके एक पन्थ दो काज सिद्ध होते हैं। इसमें भी एक बात याद रखनी ही चाहिए कि वे भारतीय ऐसे होने चाहिए जिन्हें ट्रान्सवालमें रहनेका हक हो। मुझे आशा है कि पाठक इन विचारोंपर ध्यान देंगे।

इमाम साहब

इमाम अब्दुल कादिर बावजीर, जो तीसरी बार जेल काट रहे हैं, १५ तारीखको रिहा होंगे। मुझे आशा है कि उनके पदका, उनकी इमामतका और उनकी सेवाओंका विचार करनेवाले सभी भारतीय उनको सम्मान देनेके लिए उस दिन जेलके दरवाजेपर पहुँचेंगे।

गुरुवारको रिहा होंगे

सर्वश्री ई॰ एस॰ कुवाड़िया, एम॰ पी॰ फैन्सी, अहमद हलीम, रजाक नूरभाई, सुलेमान कासमत, वल्लभराम छानाभाई, नारायणसामी नायडू और नायना फ्रांसिस आगामी गुरुवारको रिहा होंगे। उनका उचित स्वागत करनेकी व्यवस्था की जा रही है। मुझे आशा है कि उनको लेनेके लिए सब भाई गुरुवारको सुबह जेलके द्वारपर उपस्थित होंगे।

ब्रिटिश भारतीय समझौता-समिति[१]

ब्रिटिश भारतीय समझौता समितिकी बैठक हमीदिया इस्लामिया अंजुमनके भवनमें गत रविवारको हुई थी। बहुत-से भारतीय उपस्थित थे। स्टैंडर्टनसे श्री हाजी इस्माइल आमद, प्रिटोरियासे श्री खमीसा, जीरस्टसे श्री हाजी कासिम और क्रूगर्सडॉर्पसे श्री मुहम्मद काजी आये थे। जोहानिसबर्गके सज्जनोंमें श्री अब्दुल गनी, श्री माल[२], श्री जॉर्ज गॉडफे, श्री दादाभाई और श्री शहाबुद्दीन आदि थे। यह समिति सत्याग्रहियोंकी सहायताके लिए बनाई गई है। इसमें वे लोग शामिल हो सकते हैं जो जेल जाने आदिमें भाग नहीं ले सके हैं। श्री हाजी हबीब अध्यक्ष हैं और श्री जॉर्ज गॉडफे अवैतनिक मन्त्री। श्री गांधी बैठकमें विशेष

आमन्त्रणसे उपस्थित थे। श्री हाजी हबीवने बैठकका कार्य शुरू करते हुए बहुत विवेचन किया। उन्होंने कहा कि श्री गांधीने लड़ाईके सम्बन्धमें समझौता करते समय बहुत उतावली की।[३] यदि वे ऐसा न करते और जनरल स्मट्ससे सब बातें लिखवा लेते तो भारतीय समाजको इतने कष्ट सहन न करने पड़ते। ऐसा होनेपर भी अब तो हमें लड़ाई खत्म करनेकी ही फिक्र करनी है। जो भारतीय भाई जेल जाते हैं उनके छुटकारेमें मदद देना सब भारतीयोंका कर्तव्य है। जो जेल नहीं जाते उनको गद्दार कहना ठीक नहीं है। हमें मिलजुलकर चलना है। यह समिति जनरल स्मट्सको अर्जी देगी। अधिनियम ३६ में बहुत सी बातें रह गई हैं। उससे बहुत से लोगोंके अधिकार मारे जाते हैं। बच्चोंको परेशानी होती है। ट्रान्सवालमें जाकर अर्जी नहीं दी जा सकती।[४] सभीसे अँगूठा-निशानी माँगी जाती है। इन सब बातोंके सम्बन्धमें

  1. ब्रिटिश इंडियन कन्सिलिएशन कमिटी।
  2. छपाईकी भूल जान पड़ती है। हलीम मुहम्मद होना चाहिए।
  3. तात्पर्य जनवरी, १९०८ में ट्रान्सवास सरकार और एशियाई समुदायों के बीच हुए समझौतेसे है; देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ४३-४४।
  4. १९०८ के एशियाई पंजीयन संशोधन अधिनियम (एशियाटिक्स रजिस्ट्रेशन अमेंडमेंट ऐक्ट) के अनुसार जो भारतीय इस कानूनके लागू होने के समय ट्रान्सवालसे बाहर थे, लेकिन जिन्हें प्रवेशका अधिकार था, वे २१ सितम्बर, १९०८ से पहले दक्षिण आफ्रिकाके जिस भागमें भी रहे हों, वहींसे प्रार्थनापत्र दे सकते थे।