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१५८. नायडू और अन्य लोगोंका मुकदमा[१]

[ जोहानिसबर्ग
जून १६, १९०९]

इसके बाद,[२] खुली अदालतमें श्री थम्बी नायडूपर विनियमोंके खण्ड ९ के अन्तर्गत मुकदमा चलाया गया। उनकी ओरसे श्री गांधीने पैरवी की। श्री नायडूने अपना अपराध स्वीकार किया और जैसा कि आम तौरपर होता था, उन्हें ५० पौंड जुर्मानेकी या उसके बदले तीन मासके सपरिश्रम कारावास की सजा दी गई। तदुपरान्त सर्वश्री एन॰ ए॰ कामा और सी॰ पी॰ व्यास अदालत में लाये गये और उनपर भी वैसा ही आरोप लगाया गया। उनकी ओरसे श्री गांधीने कहा कि उनके मुवक्किल अपना अपराध स्वीकार करना चाहते हैं; किन्तु वे १४ दिनकी मोहलतकी प्रार्थना करते हैं, क्योंकि दोनोंपर अपने एक-एक निकट सम्बन्धीकी, जो खतरनाक बीमारीकी हालतम हैं, सुख-सुविधाकी जिम्मेदारी हैं। इस्तगासेकी ओरसे कोई आपत्ति नहीं की गई और उनको मोहलत दे दी गई।

इस बीच अदालतके बाहर ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्ष अ॰ मु॰ काछलिया और तमिल कल्याण सभा (तमिल बेनिफिट सोसाइटी) के अध्यक्ष श्री वी॰ ए॰ चेट्टियार इसी आरोपमें गिरफ्तार कर लिये गये थे। श्री काछलियाने शिकायत की कि गिरफ्तारीके बाद पुलिसने और अदालतके अहाते में उनको हिरासत में लेनेवाले अधिकारीने उनसे कठोरताका बरताव किया।

श्री गांधीने इस बरतावका जोरदार विरोध किया और कहा कि ऐसा बरताव सत्याग्रहियोंको दी जानेवाली सजाका कोई हिस्सा नहीं हो सकता।

न्यायाधीश श्री शूरमैने कहा कि यह बात वास्तवमें पुलिस कमिश्नरसे सरोकार रखती है, मुझसे नहीं; क्योंकि मैं तो अपने सामने प्रस्तुत विशिष्ट आरोपपर ही विचार कर सकता हूँ।

श्री डब्ल्यू॰ जे॰ मैकइनटायरने अदालतकी अनुमति लेकर कहा कि मुझे लगता है, यहाँ जो बयान दिया गया है अदालतके एक अधिकारीके रूप में उसकी पुष्टि करना मेरा कर्त्तव्य है; क्योंकि मैंने इन बातोंको अपनी आँखोंसे देखा है। उन्होंने कहा कि

  1. थम्बी नायडू, जी॰ पी॰ व्यास, एन॰ ए॰ कामा और यू॰ एम॰ शेलत १५ जून, १९०९ को गिरफ्तार किये गये थे। इनमें से पहले तीनपर अपने पंजीयन प्रमाणपत्र (रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट) दिखाने और अपने हस्ताक्षर तथा अँगूठा-निशानी देने से इनकार करने का आरोप था। शेलतपुर १९०८ के अधिनियम ३६ के खण्ड ७ के अन्तर्गत उपनिवेशमें पंजीयन प्रमाणपत्रके बिना रहनेका आरोप लगाया गया था। यह विवरण, "इंडियन ओपिनियनके लिए विशेष रूपमें" इस शीर्षकसे छपा था: "धोखा, प्रतिनिधि गिरफ्तार और दण्डित।"
  2. उसी दिन इससे पहले मजिस्ट्रेटके निजी कार्यालय में श्री शेलतको अपना अपराध स्वीकार करने और कानूनको मानने से इनकार करनेपर उपनिवेशसे चले जानेकी आज्ञा दी गई ।