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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करा सकते थे। दूसरे लोगोंका पंजीयन करना या न करना तो केवल पंजीयकके अख्तियारकी बात थी। नये कानूनके अनुसार तीन बरसके निवासियोंका अधिकार बढ़ा है। यह अलग सवाल है कि तीनके बजाय दो बरसकी अवधि क्यों न रखी गई अथवा अवधि रखी ही क्यों गई। यह सवाल संघकी अर्जीमें उठाया गया था।[१] लेकिन याद रखनेकी बात यह है कि काले कानूनसे लड़ाईसे पहले ट्रान्सवालमें रहनेवाले भारतीयोंके अधिकार बिल्कुल मारे जाते थे। उसके बजाय नये कानूनमें तीन सालके निवासियोंको अधिकार प्राप्त हुए हैं। फिर भी जितने अधिकार मिलें उतने माँगना हमारा कर्तव्य है। किन्तु ये अधिकार तबतक नहीं मिलेंगे जबतक मूल माँग पूरी नहीं की जाती। दो माँगें मंजूर कर ली जायें तो बाकीको मंजूर कराना आसान बात है। इसके अतिरिक्त यह याद रखना चाहिए कि यदि काले कानूनके अन्तर्गत लड़ाईसे पहले रहनेवाले भारतीयोंको अधिकार प्राप्त थे तो वह कानून मौजूद है। उसकी रूसे ऐसे भारतीय क्यों नहीं आ सकते? वह नून जबतक लागू है तबतक वैसा अधिकार, यदि उसमें हो तो, लड़कर भी लिया जा सकता है। किन्तु उस कानूनको पढ़नेवाला कोई भी आदमी देख सकता है कि वह अधिकार उसमें दिया ही नहीं गया है।

फुटकर अधिकार माँगनेवालोंको तो मेरी खास सलाह यह है कि तना कटेगा तो डालियाँ अपने-आप मुरझा जायेंगी, यह सोचकर वे तनेको काटनेका उद्योग करें।

धर-पकड़

मैं देखता हूँ कि भारतीय समाजका भाग्य उदित हो रहा है। शिष्टमण्डलके जानेके समय जेलें भर रही हैं, यह खुशीकी बात है। गुरुवार, ता॰ १७ को निम्नलिखित तमिल और गिरफ्तार किये गये हैं:

श्री एन॰ के॰ पीटर, रोम जॉन, मोज़ेज़ एन्थनी, डेविड एन्थनी, गैब्रिएल एन्थनी, पीटर एन्थनी, हैरी तमब्रम, एडवर्ड वरमले, एस॰ चेट्टी, छना, भीखा कसन, वीरडु, जे॰ एम॰ एस॰ कुक, राजा फ्रांसिस, के॰ सुबिया नायडू, पना पडियाची, पेरूमल नायडू, बी॰ कृष्णसामी नायडू, वी॰ मथुरासामी पडियाची, वी॰ एन॰ पीटर, सामीनाथन, सहाला पडियाची, वी॰ नायडू, पी॰ चेटी, एम॰ पी पडियाची, वी॰ मुटिया नायडू, एन० गोपाल, आर॰ के॰ पडियाची, एन॰ चेट्टी एस॰ चेट्टी, जी॰ पडियाची, एस॰ पी॰ नायडू और अपु चेट्टी।

इनमें श्री गोपाल भी आ जाते हैं। शुक्रवारको दूसरे इकतालीस लोग पकड़े गये; वे भी तमिल ही हैं। जब इक्कीस लोग गिरफ्तार किये गये तब बाकी तमिलोंने पुलिसको खबर दी कि वे भी तैयार है। अब प्रिटोरियाकी बस्तीमें शायद ही कोई तमिल रहा हो। इन सबके मुकदमे पेश होनेवाले थे, तभी उनको मुल्तवी करनेकी बात चलाई गई। उनको मुल्तवी करते हुए जब सरकारी वकीलने जमानत तय करनेकी माँग की तो न्यायाधीश मेजर डिक्सनने कहा कि सत्याग्रहियोंकी जमानत नहीं होती; क्योंकि सरकार तो चाहती ही है कि ये लोग भाग जायें। इससे प्रकट होता है कि जहाँ बहुत भारतीय गिरफ्तार होते हैं वहाँ सरकार खुद पस्तहिम्मत हो जाती है।

  1. देखिए "प्रार्थनापत्र: उपनिवेश-मन्त्रीको", १७-१८।