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जोहानिसबर्गको चिट्ठी

सरकारका झूठ

बुधवारकी सार्वजनिक सभाके प्रस्तावके अनुसार अध्यक्षके नामसे सरकारको तार दिया गया[१] कि शिष्टमण्डलके गिरफ्तार किये गये सदस्योंको शिष्टमण्डलमें जाने देनेके उद्देश्यसे छोड़ देना चाहिए और भारतीय समाज यह जमानत देनेके लिए तैयार है कि वे वापस आ जायेंगे। जनरल स्मट्सने तुरन्त इस तारका जवाब भेजा कि जब इनकी गिरफ्तारीकी आज्ञा दी गई तब सरकारको यह मालूम नहीं था कि वे प्रतिनिधि चुने जायेंगे। यह बात बिल्कुल झूठी है। सरकारको सत्याग्रहियोंकी हलचलों और भारतीयोंकी सभाओंकी पूरी जानकारी रहती है। सरकारका हेतु स्पष्ट ही यह है कि किसी तरह शिष्टमण्डलके सदस्य न जायें। श्री गांधीको गिरफ्तार नहीं किया, सो केवल भयके कारण; और श्री हाजी हबीबको नया सत्याग्रही समझकर गिरफ्तार नहीं किया।

किन्तु जब झूठा सच्चेको दुःख देने लगता है तब उसके हाथोंसे सच्चेका हित ही होता है। सभी कहते हैं कि शिष्टमण्डलके सदस्योंको गिरफ्तार करना जनरल स्मट्सकी बड़ी भूल है। भारतीय समाजन दूसरे सदस्य चुननेसे इनकार कर दिया है। इसलिए हमारी दृष्टिसे तो जिन लोगोंका चुनाव हुआ है, उनका जेल जाना शिष्टमण्डलमें जानेके बराबर ही है। [शिष्टमण्डलके सदस्यों के रूपमें] उनका स्थान खाली रहेगा; लेकिन उसकी पूर्ति किसी दूसरे भारतीयसे नहीं की जायेगी। मैं तो चाहता हूँ कि सरकार श्री गांधीको पकड़े तो बहुत अच्छा हो; उससे तुरन्त ही सरकारकी पोल खुल जायेगी।

जेल जानेवालोंकी मदद

जो तमिल पकड़े गये हैं उनमें से कितने ही लोगोंके बाल-बच्चोंके पास खानेको भी नहीं रहा। ऐसे लोगोंके लिए बन्दोबस्त किया गया है। इनका बोझा उठाना प्रिटोरियाके सेठोंका कर्तव्य है और मुझे आशा है कि उनका बोझा संघके ऊपर नहीं पड़ेगा। पिछली बार जेल गये हुए तमिलोंके बाल-बच्चोंका भरण-पोषण करनेमें बारह पौंडसे ज्यादा खर्च हुआ है। वह संघको देना पड़ा है। ऐसा खर्च होता ही रहता है। इसलिए यह जरूरी है कि जिनसे बन पड़े वे पैसेकी मदद जरूर दें।

इस सम्बन्ध में लिखते हुए मुझे याद आता है कि गरीब होते हुए भी रेवरेंड श्री हॉवर्डने संघको एक पौंड दिया है। पिछले सप्ताह एक भारतीय युवक संघके कार्यालयमें आकर तीन पौंड दे गया। उससे नाम पूछा गया तो उसने बहुत मुश्किलसे बताया, और सो भी इस शर्तपर कि उसका नाम जाहिर न किया जाये। इसलिए उस युवकका नाम नहीं दे रहा हूँ। यह उदाहरण अनुकरणीय है।

  1. यह उपलब्ध नहीं है; किन्तु २५ जून १९०९ के इंडियाके अनुसार १६ जूनको जोहानिसबर्ग से रायटरके भेजे एक तारमें कहा गया था कि "श्री गांधीने स्मटससे भारत और इंग्लैंड जानेवाले शिष्टमण्डलोंके तीन सदस्योंको...वापस आनेपर अपनी सजा भुगतनेकी शर्तपर रिहा करने की अपीलकी है। उपनिवेश-सचिवने उत्तर दिया है कि उनकी गिरफ्तारीके वक्त उन्हें उनके शिष्टमण्डलोंके सदस्य होने की जानकारी न थी, किन्तु वे कानून में हस्तक्षेप नहीं कर सकते और फलतः उन्होंने प्रार्थनापत्रको अस्वीकृत कर दिया ।" देखिए "पत्र : 'स्टार' को", पृष्ठ २५५-५६ भी ।