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ट्रान्सवालवासी भारतीयोंके मामलेका विवरण

पाँच अधिकारियों द्वारा गिरफ्तार कर लिये गये और नीचे हस्ताक्षर करनेवाले केवल दो अपने कामपर जाने के लिए स्वतन्त्र छोड़े गये।

प्रतिनिधि कौन हैं?

१०. श्री अहमद मुहम्मद काछलिया एक ब्रिटिश भारतीय व्यापारी हैं, जो ट्रान्सवालमें १८ वर्षसे हैं। वे विवाहित हैं और अपनी पत्नी और बच्चोंके साथ जोहानिसबर्ग में रहते हैं। वे प्रिटोरियाकी मसजिदके एक न्यासी (ट्रस्टी) हैं। वे जोहानिसबर्गकी हमीदिया मसजिदके और दभेल मदरसा न्यासके भी न्यासी हैं। पिछले नौ माससे वे ब्रिटिश भारतीय संघके अध्यक्ष हैं और अपने अन्तःकरणके आदेशपर तीसरी बार जेलकी सजा भुगत रहे हैं। उन्होंने जब यह देखा कि सरकार एशियाई पंजीयन अधिनियमके[१] अन्तर्गत किये गये जुर्माने वसूल करनेके लिए भारतीय व्यापारियोंका माल बेच रही है तब उन्होंने अपना माल जिन व्यापारियोंसे उधार लिया था, उन्हींको सौंप देनेकी जरूरत महसूस की। किन्तु उनके लेनदारोंने उनकी इस कार्रवाईको राजनीति [चाल] समझा और यद्यपि उनके मालसे पूरी रकमकी वसूली हो सकती थी, फिर भी उसे जब्त करवा दिया। श्री काछलियाने इस कार्रवाईका कोई विरोध नहीं किया, और उनकी जायदादसे उनके लेनदारोंका पूरा भुगतान हो चुका है, हालाँकि जबरदस्ती वसूली होनेके कारण वे लगभग कंगाल हो गये हैं।

११. श्री चेट्टियार पचास सालसे ज्यादा उम्रके एक बूढ़े आदमी हैं और अपने परिवारके साथ दस वर्षसे जोहानिसबर्ग में बसे हुए हैं। वे तमिलोंके नेता हैं और भारतीय संघर्षके सिलसिलेमें अब दूसरी बार जेल गये हैं। उनका उन्नीस वर्षीय पुत्र भी ट्रान्सवालकी ऐक जेलमें इसी उद्देश्यके लिए पाँचवीं बार कैद भुगत रहा है।

१२. श्री हाजी हबीब उनतीस वर्ष पहले दक्षिण आफ्रिका आये थे और तबसे कतिपय महत्त्वपूर्ण भारतीय व्यवसायोंसे उनका सम्बन्ध रहा है। उनका विवाह ट्रान्सवालमें हुआ था और वे अपने बच्चोंके साथ जोहानिसबर्ग में रहते हैं। वे प्रिटोरियाकी स्थानीय भारतीय समितिके अवैतनिक मन्त्रीका पद पिछले पन्द्रह सालसे सँभाल रहे हैं और इस सारे समयमें ट्रान्सवालके भारतीय जन-आन्दोलनोंसे उनका घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। वे प्रिटोरियाकी मसजिदके स्थायी अवैतनिक मन्त्री और प्रिटोरिया अंजुमन इस्लामके अध्यक्ष हैं। वे भारतीय समाजके उस भागके सदस्य हैं जिसने सरकारसे राहत पानेकी व्यर्थ कोशिशें करनेके बाद शुरूसे ही एशियाई पंजीयन अधिनियम (एशियाटिक रजिस्ट्रेशन ऐक्ट) को माना है। लेकिन इसको माननेका कारण बहुत कुछ यह था कि समाज इसे न माननेसे होनेवाली भारी आर्थिक हानि सहनेमें असमर्थ था या सहना नहीं चाहता था। फिर भी अन्य भारतीयोंके समान उनके समाजने राहत पानेके प्रयत्न कभी शिथिल नहीं किये हैं। किन्तु श्री हाजी हबीब अब, जब कि उनके सैकड़ों देशवासी सामूहिक हितके लिए अकथनीय कष्ट भोग रहे हैं, अपनी जान और मालकी सुरक्षाका उपभोग करने में असमर्थ हैं। इसलिए उन्होंने प्रण कर लिया है कि यदि शिष्टमण्डलके राहत पानेके प्रयत्न असफल हुए तो वे कष्ट भोगनेवाले अन्य लोगोंके साथ मिल जायेंगे और अपने पंजीयन प्रमाणपत्र (रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट) का उपयोग न करेंगे। वे उस ब्रिटिश भारतीय समझौता समितिके[२] संस्थापक और अध्यक्ष हैं जो जून मासमें सरकार तथा अन्यायका विरोध

  1. एशियाटिक रजिस्ट्रेशन ऐक्ट।
  2. ब्रिटिश इंडियन कंसिलिएशन कमिटी
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