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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करके कष्ट भोगनवाले लोगोंमें बीच-बचाव करनेके लिए बनाई गई थी। समितिका उद्देश्य सरकारको भारतीय समाजकी बहुत ही उचित मांगें शोभनीय रूपसे स्वीकार करनेका अवसर देना और इस तरह समझौता कराना था। सरकारको एक प्रार्थनापत्र दिया गया था और पिछले १९ जूनको जनरल स्मट्ससे एक शिष्टमण्डल मिला था; किन्तु जनरल स्मट्सने कहा कि वे उन दो मुख्य मुद्दोंके सम्बन्धमें, जिनका उल्लेख आगे किया गया है, भारतीयोंकी प्रार्थना स्वीकार नहीं कर सकते।

१३. चौथे प्रतिनिधि श्री गांधी पिछले सोलह सालसे दक्षिण आफ्रिकामें बसे हुए हैं। वे इनर टेम्पलके बैरिस्टर, नेटाल सर्वोच्च न्यायालयके वकील और ट्रान्सवाल सर्वोच्च न्यायालयके अटर्नी हैं। वे ट्रान्सवालमें १९०३ से रहते और वकालत करते आ रहे हैं। वे ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय संघके अवैतनिक मन्त्री हैं और सन् १८९३ से दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंके सार्वजनिक कार्यसे उनका घनिष्ठ सम्बन्ध रहा है। उन्होंने पिछली लड़ाईमें भारतीय स्वयंसेवक आहत-सहायक दल (इंडियन वॉलंटियर एम्बुलेंस कोर) के सहायक अधीक्षक (सुपरिन्टेन्डेन्ट) के रूपमें सेवा की थी[१] और जनरल बटलरके खरीतोंमें उनका उल्लेख किया गया था। पिछले जूलू विद्रोहके दिनोंमें भारतीय समाजने जो डोली-वाहक दल[२] (स्ट्रेचर बियरर कोर) संगठित किया था, उसमें भी उन्होंने काम किया था और उनको सार्जेन्ट-मेजरका पद दिया गया था। वे सन् १९०६ में ट्रान्सवालके भारतीयोंके संघर्षके सम्बन्धमें लन्दन भेजे गये शिष्टमण्डलमें श्री हाजी वजीर अलीके सह-प्रतिनिधि थे। वे इस मामलेमें तीन बार जेल भोग चुके हैं। उनका पुत्र छः महीनेकी कैदकी सजा भुगत रहा है, यद्यपि उसके पास लॉर्ड मिलनर द्वारा जारी किया गया प्रमाणपत्र है और वह ट्रान्सवालका अधिवासी है। छोटे गांधीकी यह तीसरी जेल-यात्रा है। जनवरी १९०८ के समझौतेके बाद, जिसका उल्लेख इस वक्तव्यमें आगे किया गया है, जब श्री गांधी सरकार और भारतीय समाजके बीच हुए समझौतेके सम्बन्धमें अपना कर्तव्य पूरा करनेके लिए पंजीयन कार्यालय (रजिस्ट्रेशन ऑफिस) जा रहे थे, उनपर उनके कुछ देशभाइयोंने बुरी तरह हमला किया, क्योंकि उन्हें समझौतेपर भरोसा नहीं था और वे श्री गांधीके कार्यसे नाराज थे।

१४. यह ध्यान देने योग्य बात है कि शिष्टमण्डल भेजनेका आग्रह ज्यादातर उन्हीं ब्रिटिश भारतीयोंने किया है जो अबतक इतने कमजोर रहे हैं कि आर्थिक हानि और कारावासका खतरा नहीं उठा सके और इसीलिए एशियाई कानूनको माननेके लिए मजबूर हो गये हैं। किन्तु, उन्होंने प्रतिनिधियोंका पूरा खर्च अपनी इच्छासे देना स्वीकार किया है। इससे प्रकट होता है कि उनकी राहत पानेकी इच्छा कितनी तीव्र है।

संघर्षका संक्षिप्त इतिहास

१५. यह आम तौरपर मंजूर किया जाता है कि लड़ाईसे पहले ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थिति जितनी अच्छी थी, उसके बाद उतनी अच्छी कभी नहीं रही। टिप्पणी 'क' से यह ज्यादा अच्छी तरह प्रकट हो जायेगा। ट्रान्सवालमें ब्रिटिश झंडा फहरानेके बाद उस स्थितिमें लगातार बिगाड़ होता रहा है। १८८५ का कानून ३ (जिसके अन्तर्गत ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेवाले

  1. देखिए खण्ड ३, पृष्ठ १५७-६०।
  2. देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ३७८-८३।