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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

वे अभागे हैं । इसके अतिरिक्त दूकानदार संघर्ष में पैसेकी मदद कर सकते हैं । हमारा ध्येय जैसे बने वैसे सरकारको थका डालना है । सरकारको थकाने, अर्थात् जेल जानेके दो रास्ते हैं । एक तो यह कि फेरीवाले बिना परवानोंके फेरी लगा कर गिरफ्तार हों । उनका माल नीलाम करने की बात नहीं है, इसलिए उनपर तो जुर्माना ही होगा । दूसरा रास्ता यह है कि सीमापर अँगूठेकी निशानी, अँगुलियोंकी छाप, हस्ताक्षर आदि न देकर गिरफ्तार हों और जेल जायें । बहुत पैसा पास रखकर किसीको भी फेरी नहीं लगानी चाहिए । साथ में जेवर आदि भी नहीं रखने चाहिए । अँगूठोंके निशान न देनेवालोंके ऊपर मुकदमे चलाये जाने लगे हैं, इसलिए गिरफ्तारी सहज ही हो सकती है । ट्रान्सवालमें प्रवेश करनेके लिए अब बिलकुल सच्चे अनुमतिपत्रवाले लोग ही चाहिए। जिनके पास डचोंके जमाने के पास हैं, उन्हें फिलहाल नहीं आना चाहिए । इसी प्रकार शिक्षित लोगोंको भी फिलहाल नहीं आना चाहिए ।

यदि उपर्युक्त पद्धतिसे लड़ें तो अक्तूबर महीने तक सच्चा रंग निखर सकता है । यदि काफी शक्ति जता सकें, तो युद्धका अन्त उसके पहले भी हो सकता है । किन्तु यदि अभी ऐसा न हुआ, तो अक्तूबरमें हो सकता है । उस समय तक बहुत-से भारतीयोंके फेरीके परवाने (लाइसेंस) खत्म हो जायेंगे । हम उम्मीद करते हैं कि सैकड़ों भारतीय अपने परवाने फिर नहीं लेंगे । इसलिए सरकारको पकड़े बिना चारा ही न रहेगा। जिनके प्रमाणपत्र जल चुके हैं, उन्हें तो परवाने मिलनेवाले हैं ही नहीं । इसलिए मुझे आशा है कि इतने भारतीय तो बिना परवानेके रहेंगे ही ।

नेटालके सेठ

श्री दाउद मुहम्मद, श्री पारसी रुस्तमजी तथा श्री आंगलिया बहुत परिश्रम कर रहे हैं । उन्हें जोहानिसबर्ग में गुरुवार' तारीख २६ को गिरफ्तार नहीं किया गया, इसलिए वे तार देकर १२ बजेकी गाड़ी से प्रिटोरिया गये । उनके साथ श्री रांदेरी भी थे । वे अंजुमन इस्लामियाके मकानमें प्रमाणपत्र इकट्ठे करनेकी बात कर रहे थे । उसी समय सुपरिटेंडेंट बेट्सने आकर वारंट दिखाया और उन चारों सज्जनोंको गिरफ्तार कर लिया । उन्हें जमानत पर छोड़ने से इनकार कर दिया । बादमें यह मालूम हुआ कि उन्हें देश-निकालेका वारंट दिया गया है । अन्तिम गाड़ीसे श्री गांधी प्रिटोरिया गये । वकील श्री ब्लेककी मारफत उन्होंने पुलिसको नोटिस दिया कि सरकारको इस प्रकार वारंट निकालकर ले जानेका अधिकार नहीं है। इस नोटिसका उद्देश्य सर्वोच्च न्यायालयमें जाना नहीं था, केवल सरकारका जुल्म दिखाना था । नोटिसका कोई प्रभाव दिखाई नहीं पड़ा। पुलिस उक्त सेठोंको सवेरेकी गाड़ी से नेटाल ले गई । कोई बात छुपाकर नहीं रखी गई थी तथा जो मिलना चाहते थे, उन्हें मिलने दिया जाता था । स्टेशनपर कुछ भारतीय इन्हें विदाई देनेके लिए पहुँच गये थे ।

रातके १२ बजे अंजुमन इस्लामियाके मकानपर सभा हुई और फिर प्रमाणपत्र इकट्ठे करनेकी बात चली । हाजी कासिमने कहा है कि वे रविवारको विचार कर बतायेंगे कि मेमन प्रमाणपत्र देंगे या नहीं । बाकी लोगोंने तुरन्त देनेका निर्णय किया ।

१. यहाँ “ बुधवार " होना चाहिए ।

२. देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ४८० ।

३. देश-निकालेके आज्ञा-पत्रके लिए देखिए परिशिष्ट २ |

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