पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रमाणपत्रोंकी परवाह नहीं करते । वे प्रमाणपत्रोंसे मिलनेवाला लाभ छोड़ देंगे, वे न परवाना बतायेंगे, न लेंगे और न सरकारके कानूनको किसी प्रकार मानेंगे तथा यथासम्भव प्रयत्न करके जेल जायेंगे ।

अब मैं यह जानता हूँ कि ये २,००० भारतीय ऐसे साहसी नहीं हैं । उनमें से कुछ तो परवाने (लाइसेंस) लेकर बैठे हैं । वे परवानेका उपयोग करते हैं और जब कोई अधिकारी पूछता है तो उसे परवाना दिखाते हैं । इस कोटिके जिन लोगोंने प्रमाणपत्र जलाये हैं उन्हें मैं न जलानेवालोंके बराबर मानता हूँ । अर्थात् २,००० में से एक हजार और निकाल देनेकी जरूरत मानता हूँ । अब जो एक हजार बच गये, वे क्या कर सकते हैं ? जवाब यह है कि वे सरकारको हिला सकते हैं और न्याय प्राप्त कर सकते हैं । उनके संघर्ष करने से खूनी कानून रद होगा, उच्च-शिक्षा प्राप्त लोगोंके लिए दरवाजा खुला रहेगा और ट्रान्सवालमें होते हुए भी जिनके पास प्रमाणपत्र नहीं हैं, उनमें जो सच्चे हैं, उनके अधिकारोंका संरक्षण होगा । किन्तु क्या अन्य लोगोंके पीछे हट जानेपर भी एक हजार व्यक्ति लड़ेंगे ? मेरी मान्यता है कि लड़ेंगे । अन्ततक लड़नेवाले तो हमेशा थोड़े ही होते हैं । यह समझकर कि संघर्ष सच्चा है इसलिए लड़ना चाहिए, वे एक-दूसरेसे बहस नहीं करते । वे, दूसरे क्या करेंगे उसका विचार न करके, जान हथेलीपर रखकर लड़ते हैं ।

इन एक हजार लोगोंको जबरदस्त दुःख उठाना पड़ेगा । पैसा जायेगा, सजा होगी, देश-निकाला होगा, मार खानी पड़ेगी, किन्तु इस सबसे क्या होता है ? सब चला जाये, आन नहीं जानी चाहिए । भले ही और सब उन्हें छोड़ दें, किन्तु ईश्वर उन्हें नहीं छोड़ेगा ।

जो जुर्माना नहीं देते, उनका माल बेचकर वसूल करनेकी ज्यादती बढ़ती जा रही हैं । प्रिटोरियामें ऐसा ही हुआ, हाइडेलबर्ग में ऐसा ही हुआ और वेरोनिगिंग में भी ऐसा ही हुआ है । यदि सारे दूकानदार बिना परवानोंके हों तब तो कोई अड़चन न हो; और सामान नीलाम किया जाये तो हमें उसकी चिन्ता न करनी पड़े । किन्तु अलग-अलग व्यक्तियोंके मालकी नीलामीसे होनेवाली हानिको सहन करनेकी शक्ति अभी भारतीयोंमें नहीं आई है । वैसी शक्ति शीघ्र ही न आये, यह बात समझमें आने-जैसी है । बहुत-से भारतीयोंके पास पूरे वर्षका परवाना है, इसलिए थोड़े ही लोगोंके बारेमें विचार करना बच रहता है । उनके लिए ठीक रास्ता यह है कि वे कानूनके मुताबिक, किन्तु नामके लिए, अपनी दूकान गोरोंको बेच दें और व्यापार उनके नामसे करें । श्री गेब्रियल आइज़क ऐसा करनेके[१] लिए तैयार हैं । ऐसा होनेपर मालकी नीलामो बन्द हो सकती है । कोई कहेगा कि ऐसा करने के बाद तो भारतीय व्यापारियों-के लड़ने की कोई बात ही नहीं बचती । खुद दुःख सहने से बचें और गरीब फेरीवाले मरें-- यह कलंक दूर करने के लिए गोरोंके नामसे व्यापार करनेवाले दूकानदारोंको स्वयं फेरी लगा-कर जेल जाना चाहिए । जिनके पास अपने परवाने हैं, वे नौकरों अथवा अपने आत्मीयोंको जेल जानेके लिए तैयार करें । दूकानदारोंका ऐसा करना लाजिमी है। फेरीवालोंको भी ईर्ष्यावश उपर्युक्त व्यवहार नहीं करना चाहिए । जेल जानेवाले व्यक्तिके बारेमें यह नहीं

सोचना चाहिए कि वह मर गया; बल्कि यह मानना चाहिए कि वह अधिक जी रहा है । जेल जानेवाले भारतीयोंको चाहिए कि वे अपने-आपको भाग्यवान मानें । जो जेल नहीं जा सकते,

 
  1. अर्थात, नाममात्रको इन दुकानोंको रखनेके लिए।