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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


प्रवासी विधेयकसे, अन्य बातोंके साथ, ऐसा कोई भी व्यक्ति, जिसपर निष्कासनकी आज्ञा लागू होती है, निषिद्ध प्रवासी हो जाता है। तब, एक शिक्षित भारतीय भी, जो एशियाई विधेयकके पास होनेसे पहले उपनिवेशका अधिवासी नहीं रहा, शिनाख्ती टिकट प्राप्त करनेका अधिकारी नहीं है, और इसलिए उसपर निष्कासनकी आज्ञा लागू होती है और इस प्रकार वह प्रवासी विधेयकके अन्तर्गत निषिद्ध प्रवासी है।

टिप्पणी "ग"

लिखित समझौता इस प्रकार था:

१. ब्रिटिश भारतीयोंको स्वेच्छासे अपनी शिनाख्त करवा लेनी चाहिए।

२. १९०७ का कानून २ ऐसे ब्रिटिश भारतीयोंपर लागू नहीं होना चाहिए, और स्वेच्छासे कराई गई शिनाख्तको एक अलग कानून द्वारा वैध रूप दे देना चाहिए।

शर्ते २८ जनवरी १९०८[१] को ट्रान्सवाल उपनिवेश-सचिवके नाम लिखे गये सर्वश्री गांधी, क्विन तथा नायडूके पत्रमें दी गई हैं। पत्रकी प्राप्तिके दो दिन बाद श्री गांधीको, जो तब एक कैदी थे, समझौतेपर उपनिवेश-सचिव (श्री स्मट्स) के साथ बातचीत करनेके लिए प्रिटोरिया ले जाया गया, और उसके बाद आगे और विचार किया गया। श्री गांधीके वक्तव्यके अनुसार इन मुलाकातोंमें श्री स्मट्सने वादा किया कि जब एशियाई समझौतेके सम्बन्धमें अपना दायित्व पूरा कर देंगे, अर्थात्, स्वेच्छासे अपनी शिनाख्त करवा लेंगे, तब (१९०७ का दूसरा) एशियाई कानून रद कर दिया जायेगा।[२]

छपी हुई मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५१८०) से।

१८०. लन्दन

[जुलाई १६, १९०९ के बाद ]

सर कर्जन वाइलीकी हत्या

"शिष्टमण्डलकी यात्रा" शीर्षकके अन्तर्गत शिष्टमण्डलके कार्यके सम्बन्धमें जितने समाचार दिये जा सकते थे, उतने दिये जा चुके हैं। इस शीर्षकके अन्तर्गत अब दूसरी जानने लायक खबरें दे रहा हूँ।

सर कर्ज़न वाइली और डॉक्टर लालकाकाकी हत्या हुई, यह एक भयंकर काम हुआ है। सर कर्ज़न वाइली भारतके विभिन्न स्थानों में अधिकारी रहे थे। यहाँ वे लॉर्ड मॉर्लेके अंगरक्षक थे। डॉक्टर लालकाका एक पारसी डॉक्टर थे और चीनके शंघाई नगरमें अपना धन्धा करते थे। वे यहाँ कुछ दिनोंके लिए ही आये थे।

  1. मूलमें "२६ जनवरी १९०८" है जो छपाईकी भूल है; देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ३९-४१ ।
  2. एक टिप्पणी 'घ' और थी; किन्तु वह छापी नहीं गई थी; देखिए "पत्र : लॉर्ड ऍम्टहिलको ", पृष्ठ ३३४।