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लन्दन


जुलाई २ को इम्पीरियल इन्स्टिट्यूटके जहाँगीर भवन में राष्ट्रीय भारतीय संघ (नेशनल इंडियन एसोसिएशन) की ओरसे नाश्ता-पानीका आयोजन किया गया था। यह समारोह ब्रिटेनमें पढ़नेवाले भारतीय छात्रोंका अंग्रेजोंसे सम्पर्क कराने के उद्देश्य से किया जाता है, इसलिए इसमें जो भी अंग्रेज आते हैं वे भारतीयोंके मेहमान ही कहे जायेंगे। इस दृष्टिसे श्री कर्जन वाइली हत्यारेके मेहमान थे। इस प्रकार श्री मदनलाल धींगराने अपने ही घरमें अपने मेहमानकी हत्या की; और बीचमें आनेवाले डॉक्टर लालकाका का भी खून किया।

सर कर्जन वाइलीकी हत्याके समर्थनमें यह तर्क दिया जाता है कि अंग्रेजोंके कारण ही भारत बर्बाद हुआ है। यदि जर्मनी इंग्लैंडपर चढ़ाई करे तो जैसे अंग्रेज जर्मनोंको मार डालेंगे वैसे ही प्रत्येक भारतीयको अंग्रेजोंको मारनेका अधिकार है।

इस हत्याके सम्बन्धमें प्रत्येक भारतीयको ठंडे दिलसे विचार करना है। इससे भारतकी बहुत हानि हुई है। शिष्टमण्डलके कामको भी बहुत कुछ धक्का पहुँचा है। किन्तु इस दृष्टिसे विचार करनेकी आवश्यकता नहीं है। विचार अन्तिम स्थितिपर करना है। श्री धींगराकी सफाई निकम्मी है। यह काम हमारे विचारसे कायरताका है। फिर भी उनके ऊपर तो दया ही आती है। उन्होंने निकम्मा साहित्य ऊपर-ऊपर पढ़कर यह काम किया है। उन्होंने अपने बचावका बयान भी रट रखा था, ऐसा जान पड़ता है। दण्ड तो उनको सिखानेवालेको देना चाहिए। मैं उनको निर्दोष मानता हूँ। हत्या नशेमें किया गया कार्य है। नशा केवल शराब या भाँगका ही नहीं होता, किसी पागलपन-भरे विचारका भी हो सकता है। श्री धींगराका नशा ऐसा ही था। जर्मनों और अंग्रेजोंका उदाहरण गलत है। जर्मन चढ़ाई करें तो अंग्रेज चढ़ाई करनेवालोंको ही मारेंगे। वे ऐसा तो नहीं करेंगे कि किसी भी जर्मनको जहाँ देखें वहाँ मार डालें। इसके अलावा वे जर्मनोंको छुपकर नहीं मारेंगे। यदि जर्मन किसीका मेहमान होगा तो उसको नहीं मारेंगे। यदि मैं बिना चेतावनी दिये अपने ही घरमें उस व्यक्तिको मार डालूँ, जिसने मेरा कोई अपराध नहीं किया है, तो मैं कायर ही माना जाऊँगा। अरब लोगोंमें यह एक अच्छी प्रथा है कि वे अपने घरमें दुश्मन भी हो तो उसको नहीं मारते। वे अपने शत्रुको तभी मारेंगे जब वह उनके घरसे बाहर निकल जाये और वे उसको हथियार उठानेकी चेतावनी दे दें। जो लोग यह मानते हैं कि मार-काटसे भलाई होती है, वे उस नियमकी रक्षा करके मार-काट करेंगे तो वीर माने जायेंगे। बाकी तो डरपोक ही माने जायेंगे। कुछ लोग कहेंगे कि श्री धींगराने जो यह काम किया वह खुल्लमखुल्ला और यह समझ कर किया है कि उनको तो जान देनी ही पड़ेगी, इसलिए यह कोई मामूली बहादुरी नहीं मानी जा सकती। किन्तु मैं पहले बता चुका हूँ कि नशेमें मनुष्य ऐसा काम कर सकता है और मृत्युका भय भी छोड़ सकता है। इसमें बहादुरी तो नशेकी हुई, मनुष्यकी नहीं। मनुष्यकी बहादुरी तो दीर्घ काल तक बहुत दुःख सहन करनेमें है। जो कार्य विवेकपूर्वक किया जाता है वही बहादुरीका काम माना जाता है।

मुझे कहना चाहिए कि जो लोग ऐसी हत्याओंको भारतके लिए लाभप्रद मानते हैं वे नासमझ हैं। धोखाधड़ीके कामोंसे लोगोंको लाभ नहीं होता। ऐसी हत्याओंसे, कदाचित्, अंग्रेज भारतसे चले जायेंगे। लेकिन इसके बाद राज्य कौन करेगा? इसका उत्तर यही होता है कि हत्यारे ही राज्य करेंगे। तब सुख कौन भोगेंगे? क्या अंग्रेज केवल इसीलिए बुरे हैं कि वे अंग्रेज हैं? क्या जिनकी चमड़ी भारतीयोंकी-जैसी है, वे सब अच्छे ही हैं? बात ऐसी हो, तो