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पत्र : लॉर्ड ऍम्टहिलको


इसपर टिप्पणियाँ

१. अगर १९०७ का कानून रद कर दिया गया और अगर १९०८ का कानून ३६ न रहा तो प्रस्तावित संशोधनमें कानून ३६ के उल्लेख की बात ही न रहेगी। लेकिन इसका उल्लेख इसलिए आवश्यक हो गया है कि कानून ३६ में देश-निकालेकी एक धारा है; और कानून १५ के खण्ड २ के उपखण्ड ४ में यह व्यवस्था है कि जिस व्यक्तिपर देश-निकालेकी आज्ञा लागू हो सकती है वह व्यक्ति शिक्षा-परीक्षा[१] पास कर लेनेपर भी निषिद्ध प्रवासी हो जाता है। उक्त उपखण्ड ४ इस तरह है:

कोई भी व्यक्ति, जो इस उपनिवेशमें प्रवेशकी या प्रवेश करने के प्रयत्नकी तारीखको, किसी ऐसे कानूनकी धाराओं के प्रभाव क्षेत्रमें आता हो या प्रवेश करनेपर आ जाये, जो उस तारीखको लागू हो और जिसके अन्तर्गत उसे, यदि वह इस उपनिवेशमें मिले तो, उसी तारीखको या उसके बाद इस उपनिवेशसे निकाला जा सके, या निकल जानेकी आज्ञा दी जा सके; चाहे यह निष्कासन या आज्ञा ऐसे किसी कानूनको तोड़नेके अपराधमें प्राप्त सजाके कारण दी गई हो, चाहे उसकी किसी धाराका पालन न करनेके कारण, या उस कानूनकी धाराओंके अनुसार अन्य किसी कारणसे। शर्त यह है कि उस व्यक्तिको किसी ऐसे जुर्मके लिए सजा न दी गई हो जो उसने उपनिवेशसे बाहर किसी अन्य स्थानपर किया हो और जिसके लिए वह माफी पा चुका हो।

२. परीक्षाके सम्बन्धमें प्रस्तावित संशोधन जनरल स्मट्स द्वारा उठाई गई इस आपत्तिको दूर करनेके लिए दिया गया है कि मौजूदा कानूनमें शायद प्रवासी अधिकारीको विवेकके प्रयोगका काफी अधिकार नहीं है, जिससे वह एक प्रवासीके लिए एक तरहकी परीक्षाकी व्यवस्था कर सके और दूसरेके लिए दूसरी तरहकी।

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ४९८०); और कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स २९१/१४२ से।

२०१. पत्र: उपनिवेश-उपमन्त्रीको

[लन्दन]
अगस्त ६, १९०९

महोदय,

मैं नम्रतापूर्वक आपके इसी चार तारीखके पत्रकी प्राप्ति स्वीकार करता हूँ, जिसमें आपने कहा है कि लॉर्ड क्रू ने मेरे साथीसे और मुझसे मंगलवार १० तारीखको ३—३० बजे ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीयोंकी स्थितिके सम्बन्धमें मिलना मंजूर किया है। मेरे साथी और मैं उक्त समयपर लॉर्ड महोदयकी सेवा में उपस्थित होंगे।

आपका, आदि,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ४९८४) से।

  1. मूल में यहाँ "एक्जामिनेशन टेस्ट" है।