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२०७. पत्र: लॉर्ड ऍम्टहिलको

[लन्दन]
अगस्त ९, १९०९

लॉर्ड महोदय,

श्रीमानने हमारे संघर्ष में भारी दिलचस्पी ली है; अतः जो विषय मेरे साथी और मेरे लिए सबसे अधिक महत्त्वका है उसपर लिखने से पहले क्या मैं श्रीमानको उसके लिए एक बार फिर धन्यवाद दे सकता हूँ? आखिरी नतीजा कुछ भी हो, आपने हमारे लिए जो-कुछ किया है उसके लिए मेरे देशवासी और मैं आपके प्रति जितनी कृतज्ञता प्रकट करें, कम होगी।

अगर मैंने आपकी बात ठीक समझी है तो आपकी राय यह है कि यदि कानूनमें ही संख्या सीमित कर दी जाये तो अधिकारके रूपमें प्रवेशकी बात मंजूर हो जायेगी। अगर ऐसा है तो मुझे लगता है कि इस रियायतके साथ ही कानून भी रद किया जाना चाहिए। इसके लिए अनाक्रामक प्रतिरोधियोंसे कोई सौदेबाजी न की जाये; बल्कि अगर जनरल स्मट्स सचमुच हमसे समझौता करना चाहते हैं तो उन्हें इस मामलेमें विचार करनेपर मेरे पेश किये संशोधनको[१] और नीचे दी गई धाराको मंजूर करनेमें कोई एतराज न होना चाहिए। इसे "१९०८" के बाद और "यह व्यवस्था भी की जाती है कि" से पहले रखा जाना चाहिए:

व्यवस्था की जाती है कि उपनिवेशमें विभिन्न जातियोंके जिन लोगोंको प्रवासियोंके रूपमें आनेकी अनुमति दी जाये, उनकी संख्या गवर्नरकी परिषदके लिए विनियम (रेगुलेशन) से तय करना जायज़ होगा (भले ही ऐसे लोग ऐसी [योग्यताकी] परीक्षा पास कर चुके हों)।

इस संशोधनसे भारतीयोंकी प्रतिज्ञा-मात्र पूरी होती है। फिर भी इससे ब्रिटिश भारतीय होनेके नाते ब्रिटिश भारतीयोंके विरुद्ध विधान-संहितामें कोई अयोग्यता उत्पन्न नहीं होती। मेरी सम्मतिमें इससे जनरल स्मट्स द्वारा या उनकी ओरसे उठाई गई आपत्तियाँ पूरी तरह दूर हो जाती हैं।

मैं मानता हूँ कि यह संशोधन पेश करते हुए मैं उपनिवेशके कानून- निर्माणके इतिहास में एक खतरनाक मिसाल कायम करनेमें सहयोग दे रहा हूँ। लेकिन जो अन्य प्रतिष्ठित सज्जन महानुभावके और हमारे उद्देश्यमें सहायक हैं उनके विचारोंका खयाल करके, मैं अपने देशवासियोंको इस अतिरिक्त धाराको माननेकी सलाह देनेके लिए तैयार हूँ। अब अगर यह [सरकार द्वारा] स्वीकार नहीं किया जाता तो, मुझे विश्वास है, आपको यह साफ मालूम हो जायेगा कि ट्रान्सवाल सरकार सम्मानपूर्ण समझौता करना नहीं चाहती। जनरल स्मट्सके तरीकोंकी—सही या गलत—मुझे कुछ जानकारी है। उस जानकारीके

  1. देखिए लॉर्ड ऍम्टहिलको लिखे पत्रके साथ दिया गया सहपत्र २, पृष्ठ ३३२; तथा पृष्ठ ३३० पर पा॰ टि॰ १ भी।