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नेटालवासी भारतीयोंके कष्टोंका विवरण
ही है। आपके सामने इससे ज्यादा मजबूत मामला लेकर आना एकदम असम्भव है। मेरा अनुरोध है कि आप इस कमरेमें आने से पहले जो कुछ भी हुआ हो उससे प्रभावित हुए बिना, इस मामलेपर विचार करें और प्रार्थीके साथ न्याय करें।"

क्लिप रिवरके लाइसेंसिंग बोर्ड [परवाना निकाय] के हालके निर्णयोंपर टिप्पणी करते हुए 'टाइम्स ऑफ नेटाल' पत्रने लिखा था:

शर्मनाक अन्याय

"इससे ज्यादा अन्यायपूर्ण और मनमानी कार्रवाईको कल्पना नहीं की जा सकती है। और हम निःसंकोच कह सकते हैं कि यदि बोअर पदाधिकारियोंने दक्षिण आफ्रिकी गणराज्यके दिनोंमें ऐसा गलत काम किया होता तो शाही सरकारने उन्हें तुरन्त ही अपना हाथ रोकनेपर बाध्य किया होता। हुआ यह है कि अनेक प्रतिष्ठित भारतीय दुकानदारोंको, जिन्होंने अपना धन्धा काफी जमा लिया है और उसमें भारी पूँजी लगा रखी है, अचानक और मनमाने तौरपर कानूनका पालन न करनेका आरोप लगाकर व्यापारिक परवानोंसे वंचित कर दिया गया है। उन्होंने तो कानूनका अपनी शक्तिके अनुसार पूरा पालन किया था और जो लोग अंग्रेजीमें नहीं लिख सकते थे, वे हर हफ्तेके अन्तमें अपनी बहियाँ किसी योग्य मुनीमसे [अंग्रेजीमें] लिखवा लेते थे। वे ऐसा बरसोंसे करते आ रहे हैं और अभीतक इस कामके खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहा गया। लेडीस्मिथके परवाना बोर्डके निर्णयको हम शर्मनाक अन्याय और गैर कानूनी भी कहेंगे; और यदि प्राथियोंको अपीलका अधिकार होता—जो कि मौजूदा कानूनके मातहत उन्हें नहीं है—तो बोर्डका यह निर्णय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तुरन्त ही खारिज कर दिया जाता। इस विषयमें हम अपनी स्थिति बिलकुल स्पष्ट कर देना चाहते हैं। हमें भारतीय व्यापारियोंसे कोई सहानुभूति नहीं है और भारतीय व्यापार समाप्त हो जाये इसमें हमें खुशी ही होगी। हम प्रवेशके बन्दरगाहपर कड़ेसे-कड़े प्रतिबन्ध लगाये जानेका समर्थन करेंगे; और इतना ही नहीं, भारतीय व्यापारियोंको नये परवाने न देने तककी हिमायत करेंगे। लेकिन जिन भारतीयोंको इस देशमें बस जाने दिया गया है, जो बरसोंसे पूर्णतया कानूनी ढंगसे अपना कारोबार चलाते आ रहे हैं और जिन्होंने अपने व्यापारिक परवानोंके बलपर व्यापारिक धन्धोंमें अपनी पूँजी लगा रखी है, उन भारतीयोंके परवाने नये करनेसे इनकार करना ऐसा कार्य है जो सब सभ्य राष्ट्रोंके कानूनोंके और न्यायकी बिल्कुल प्राथमिक कल्पनाके भी खिलाफ है। हमें आशा है कि इस सम्बन्धमें परवाना अधिकारियोंको सख्त हिदायतें दी जायेंगी, ताकि लेडीस्मिथकी इस अशोभन घटनाकी पुनरावृत्ति न हो। यदि ऐसा न किया गया तो जहाँतक भारतके लोगोंके साथ साम्राज्यीय सरकारके सम्बन्धका सवाल है, नेटाल उसे बड़ी परेशानीमें डाल देगा।

सन् १९०८ में, एस्टकोर्टके अनेक भारतीय व्यापारियोंकी परवानोंसे सम्बन्धित अपीलोंकी पैरवी करते हुए विधान-सभाके सदस्य कर्नल ग्रीनने कहा था:

अपने संसदीय कार्यकालमें मैंने हमेशा यह कहा है कि भारतीय व्यापारियोंकी संख्या बढ़ने देना वांछनीय नहीं है। और जब लोग मेरे पास यह अनुरोध लेकर आये