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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


लेकिन शिष्टमण्डल अपना आवेदन निम्नलिखित तीन कष्टों तक ही सीमित रखना चाहता है। ये तीनों कष्ट अत्यन्त गम्भीर और स्पष्ट हैं।

सन् १८९७ का विक्रेता परवाना कानून १८ (डीलर्स लाइसेन्सेज़ ऐक्ट १८); सन् १८९५ का गिरमिटिया प्रवासी कानून (इन्डेन्चर्ड इमिग्रेशन लॉ); और भारतीय बालकोंकी शिक्षाके बारेमें सरकारकी नीति।

सन् १८९७ का डीलर्स लाइसेन्सेज़ ऐक्ट

सारा भारतीय समाज महसूस करता है कि यह कानून अत्यन्त अन्यायपूर्ण और क्रूर है। इससे सारे भारतीय व्यापारी समाजको कष्ट है। इसकी शब्द-रचना तो ऐसी है कि वह सामान्य प्रयोगके लिए बनाया गया जान पड़ता है, लेकिन व्यवहारमें उसका प्रयोग उत्तरोत्तर भारतीय व्यापारियोंसे उनके परवाने छीननेके लिए ही किया गया है। ऐसा दिखाई देता है कि १८९७ के विक्रेता परवाना कानून द्वारा दी गई सत्ताका शुरूसे दुरूपयोग होता रहा है। श्री चेम्बरलेनने तो यहाँतक कहा था कि यदि भारतीय व्यापारियोंके खिलाफ किया जानेवाला उसका इकतरफा प्रयोग बन्द नहीं हुआ तो उन्हें सख्त कार्रवाई करनी पड़ेगी। जान पड़ता है, इसका तात्कालिक परिणाम यह हुआ कि नेटालकी सरकारने (श्री चेम्बरलेनके सुझावपर) नगरपालिकाओंको इस आशयके परिपत्र भेजे कि यद्यपि उन्हें अनियन्त्रित अधिकार दिया गया है किन्तु उनसे आशा यह की जाती है कि वे उसका प्रयोग न्यायपूर्वक और निष्पक्ष रीतिसे करें अन्यथा उनसे यह अधिकार छीन लिया जायेगा। और यदि वे इस अधिकारको कायम रखना चाहते हों, तो उन्हें निहित स्वार्थोंको कदापि हाथ नहीं लगाना चाहिए।

उदाहरणके लिए अभी हालमें ही घटित दो मामले उद्धृत किये जा सकते हैं। श्री एम॰ ए॰ गोगा लेडीस्मिथके एक ब्रिटिश भारतीय व्यापारी हैं। वे अपना धन्धा बहुत समयसे करते आ रहे हैं; और उन्हें यूरोपीय विक्रेताओं और ग्राहकोंका व्यापक समर्थन प्राप्त है। पिछले जूनमें वे लेडीस्मिथके एक दूसरे भारतीय व्यापारीका परवाना अपने नाम बदलवाना चाहते थे। उक्त व्यापारीकी स्थिति भी उनकी जैसी ही थी किन्तु परवाना-अधिकारीने, जिसे इस विषयमें निरंकुश सत्ता प्राप्त है, उन्हें ऐसा करनेकी आज्ञा देनेसे इनकार कर दिया। धन्धेकी जगहपर श्री गोगाकी माँकी मालिकी है। श्री गोगाने लाइसेंसिंग बोर्ड [परवाना-निकाय] में अपील की, लेकिन बोर्डने परवाना अधिकारीका निर्णय उलटनेसे इनकार कर दिया।

पिछले साल इसी प्रार्थीके एक दूसरे परवानेको नया करनेसे इनकार कर दिया गया था; उस समय इस निर्णयके खिलाफ लाइसेंसिंग बोर्डके सम्मुख की गई अपीलकी सुनवाईके समय श्री वाइली, के॰ सी॰, एम॰ एल॰ ए॰ ने कहा था:

"आप न्याय-समितिकी हैसियतसे किसी भारतीयके साथ भी अन्याय होते नहीं देख सकते। आप परवाना छीन लें तो व्यापार खतम हो गया समझिए। आपने और लेडीस्मिथके नागरिकोंने उसे अपना धन्धा जमाने दिया है तो अब, मेरा निवेदन है कि, आप उससे उसका परवाना वापिस नहीं ले सकते। यदि वह आज आकर आपसे नया परवाना माँगे तो आप इनकार कर सकते हैं। उसने आपको बताया है कि उसका ९५ प्रतिशत व्यापार यूरोपीयोंके साथ है; जाहिर है कि उसके व्यापारसे शहरके लोगोंको सुविधा