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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जातीय अपमान होता है। यदि हम उसे स्वीकार कर लेंगे तो उसका अर्थ केवल इतना ही होगा कि आखिर हम सिद्धान्तके लिए उतना नहीं लड़ रहे थे, जितना अपने निजी स्वार्थके लिए कुछ शिक्षित भारतीयोंको ट्रान्सवालमें लानेकी माँगकी पूर्तिके लिए।

आपने आजकी तारीखके 'टाइम्स' में बम्बईकी सार्वजनिक सभाको रद करनेके सम्बन्धमें[१] तार पढ़ा होगा। यह सभा कुछ प्रभावशाली क्षेत्रोंकी माँगपर शेरिफने बुलाई थी। मुझे बहुत अधिक भय है कि सरकारकी कार्रवाई...[२] ट्रान्सवालमें जो स्थिति ग्रहण की है उसके समर्थनमें...[३]

आपका, आदि,

[पुनश्च:]

श्री हाजी हबीब और मैं गम्भीरतासे विचार कर रहे हैं कि क्या हमारे लिए यह ठीक न होगा कि हम यहाँ काम खत्म करनेके बाद भारत जायें और वहाँ जनताको और भी अधिक सहानुभूति प्रकट करनेके लिए प्रेरित करें। किन्तु, लॉर्ड क्रू से जिस भेंटकी आशा है उसके हो जानेके बाद हम इस सम्बन्धमें आपसे सलाह करेंगे।

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५०३७) से।

२३९. पत्र: मणिलाल गांधीको

लन्दन,
सितम्बर १, १९०९

चि॰ मणिलाल,

तुम्हारे पत्र नियमित रूपसे मिलते हैं। श्रीमती फ्रीथने[४] मुझे इस सप्ताह फिर अपने घर खानेके लिए बुलाया था। वहीं उन्होंने तुम सबके बारेमें पूछा। उन्होंने तुम सबका और फीनिक्सके घरों आदिका चित्र भी माँगा है। इनमें से जो चित्र हों, उन्हें भेज देना। मैंने बा को भी पत्र[५] लिखा है। श्रीमती फ्रीथ बड़ी भली महिला है। मुझपर बहुत ममता रखती हैं।

समझौतेकी अब कम सम्भावना है। ऐसा होगा तो मेरे लड़े बिना काम नहीं चलेगा। तुम सबकी सहायता मुझे चाहिए। और वह सहायता यह है कि तुम सब हिम्मत रखकर जो फर्ज अदा करना है उसे करते जाओ।

  1. बम्बई सरकारके विचार में साउथ आफ्रिका यूनियन बिल पास होनेके बाद शेरिफके लिए शेरिफकी हैसियतसे इस सभाको बुलाना अवांछनीय था।
  2. यहाँ मूल कट-फट गया है और कुछ शब्द नहीं हैं।
  3. यहाँ एक पूरी पंक्ति कटी है।
  4. गांधीजीका इनसे परिचय शायद तभीसे था जब वे इंग्लैंडमें पढ़ते थे। देखिए खण्ड ६, पृष्ठ १७०।
  5. यह पत्र उपलब्ध नहीं है ।