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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

पढ़ी चल रही है । जिनसे कष्ट नहीं सहा जाता, उन्हें श्री तिलकका उदाहरण याद रखना चाहिए । वे सादी खूराकपर छः वर्ष तक कैसे रह सकेंगे ? उनकी अवस्था भी बुढ़ापेकी है । वे यूरोपीय होते तो आज शासकके पदपर बैठे होते । ऐसा कहकर मैं यूरोपीयोंसे द्वेष नहीं करता । भारतीय उनकी तरह पाप करके राजसुख भोगें, इससे तो अच्छा है कि वे पापमुक्त रहकर रूखी-सुखीपर हो गुजारा करें । जो भी हो, कहनेका सार यह है कि हमें जो कष्ट भोगने पड़ रहे हैं, वे महान श्री तिलकके कष्टोंके आगे कुछ नहीं हैं ।

मंगलवार [ सितम्बर ८, १९०८]

नेटालके सेठोंका काम

श्री दाउद मुहम्मद, श्री पारसी रुस्तमजी तथा श्री आंगलिया फोक्सरस्ट से वापस आने के बाद हाथपर-हाथ धरकर बैठे नहीं रहे । उन्होंने जोहानिसबर्ग में चन्दा उगाहनेका काम शुरू किया और २०० पौंडसे ऊपर इकट्ठा भी कर लिया । वे हर जगह गये और जहाँ भी गये, सबने निधिमें पैसे दिये । उनके साथ इमाम साहब अब्दुल कादिर बावजीर, श्री काछलिया, श्री व्यास, श्री कामा आदि भी जाते थे । वे शुक्रवारको, नमाजके बाद, क्रूगर्सडॉर्प गये । उनके साथ श्री कामा भी थे । क्रूगर्सडॉर्पमें ३ घंटे के भीतर लगभग ६४ पौंडकी रकम लिखी गई और ६० पौंड नकद मिले । वहाँसे वे रातको वापस लौटे ।

शनिवारको सुबहकी गाड़ीसे वे हाइडेलबर्ग गये । वहाँ श्री भायातने प्रारम्भमें ही १६ पौंड देकर अत्यन्त उत्साह प्रदर्शित किया, जिसके फलस्वरूप ४५ पौंड जमा हुए । हाइडेलबर्ग से उसी दिन रातकी गाड़ीसे वे स्टैंडर्टन गये । श्री काछलिया तथा श्री भायात उनके साथ थे । बादमें श्री कामा भी उसी गाड़ीसे उनके साथ हो लिये । स्टैंडर्टनमें गाड़ी रातके २ बजे पहुँचती है, फिर भी उनको अगवानी करने के लिए बहुत-से नागरिक उपस्थिति हुए थे । भारतीयोंको मैं नागरिक कह रहा हूँ, इसपर किसोको ताज्जुब नहीं होना चाहिए । भारतीय अब गुलाम नहीं, नागरिक हो हैं । हमें [ उपनिवेशके शासनमें ] साझेदारीका अधिकार है और हम उसी अधिकारके लिए संघर्ष कर रहे हैं। स्टैंडर्टनमें ५३ पौंडकी रकम इकट्ठी हुई ।

इतने कामके बाद, मुकदमा चलने तक इन सेठोंको आराम करनेका हक था, किन्तु उन्होंने प्रिटोरियामें गोता लगाने का निश्चय किया । रविवारको रातकी गाड़ीसे वे प्रिटोरियाके लिए रवाना हुए । वहाँ इन्होंने सोमवारकी प्रातः चन्दा उगाहना शुरू कर दिया। [ प्रिटोरियामें ] उनको मेजबानी श्री ए० एम० सुलेमानने की । नाश्ता करनेके बाद वे वस्तीसे शहर पहुँचे और उन्होंने मेमन बिरादरीसे चन्दा लेना शुरू किया । श्री हाजी कासिमने ५ पौंड लिखवाये । दो बजे श्री गांधी प्रिटोरिया पहुँच गये और शाम तक उगाही चलती रही। साथमें श्री हाजी कासिम आदि भी थे ।

१. तात्पर्य बाल गंगाधर तिलकसे है; देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ४१२-१३ ।

२. भारतीय नागरिक नहीं थे, क्योंकि उन्हें राजनीतिक मताधिकार नहीं था । और ट्रान्सवालके विधान-मण्डलमें उन्हें जो प्रतिनिधित्व प्राप्त था, उसका स्वरूप " संरक्षकता ” (ट्रस्टीशिप) का था । गांधीजीने पहले भी बराबर इस बातपर जोर दिया था कि भारतीय कोई राजनीतिक अधिकार नहीं चाहते (देखिए खण्ड ६, पृष्ठ २२३ ) । किन्तु उन्होंने नागरिक अधिकारोंकी माँग अवश्य की । नागरिक अधिकारोंसे उनका तात्पर्य था, “भूस्वामित्व, आवागमन तथा व्यापार सम्बन्धी अधिकार " । देखिए खण्ड ६, पृष्ठ २६७ ।

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