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जोहानिसबर्गकी चिट्ठी

चार बजे बस्ती में सभा हुई । श्री बगस अध्यक्ष थे । उन्होंने उनका स्वागत किया और बादमें सेठोंने उसका उचित उत्तर दिया । बस्ती में चन्दा इकट्ठा करनेके लिए समय नहीं रहा; किन्तु बस्तीके भारतीयोंने चन्दा इकट्ठा करनेका वचन दिया है । प्रिटोरियामें २६ पौंडसे अधिक रकम उगाही गई ।

प्रिटोरियाकी शक्तिको देखते हुए यह रकम बहुत कम है । किन्तु मेमन सज्जनोंने सहायता कर इतना भी हाथ बँटाया, इससे जाहिर होता है कि वे भी समाजके साथ हैं और इस कानूनके विरुद्ध हैं । उनकी मददका असर सरकारपर भी होना चाहिए । उसकी समझमें यह बात आ जायेगी कि पानीमें लाठी मारनेसे पानी फटता नहीं, और भारतवासी भी एक पानी-- एक लहू हैं ।

सेठोंने शामको बस्तीसे डर्बन जानेवाली गाड़ी पकड़ी । उनसे मिलने और उन्हें बिदाई देने के लिए जर्मिस्टनमें इमाम साहब, श्री कुवाड़िया, श्री फैन्सी, श्री जीवनजी, श्री उमरजी साले, श्री व्यास आदि उपस्थित थे । जमिस्टनमें लगभग ४५ मिनट रुकना पड़ता है। इसका लाभ उठाकर उन्हें जर्मिस्टन [ स्टेशन ] के होटलमें दावत दी गई । होटलका मालिक अच्छा आदमी था । उसने आनाकानी नहीं की, किन्तु होटलके कमरेके परदे गिरा दिये, ताकि दूसरे लोग न देख पायें । खुशीके नारोंके बीच फोक्सरस्टकी गाड़ी चल पड़ी और सेठ लोग जेल जानेके लिए बिदा हो गये । जिस समाजके नेता ऐसी बहादुरी, ऐसो स्वदेश-भक्ति और ऐसा उत्साह दिखायें वह समाज कैसे हार सकता है ?

कूगर्सडॉर्पकी कहानी

क्रूगर्सडॉप के भारतीयोंके बीच बेकारकी फूट-फाट दिखाई पड़ रही है, और यहाँकी सरकार उसका नाजायज फायदा उठाना चाहती है । यहाँके समाचारपत्रों में खबर है कि क्रूगर्सडॉप में भारतीय व्यापारियोंने जोर-जुल्म और मारपीट कर भारतीय फेरीवालोंसे उनके प्रमाण-पत्र लिये । जिन फेरीवालोंपर ऐसे जुल्म किये गये, उन्होंने शिकायतें की हैं और अब जिन व्यापारियोंने जुल्म किया था उनपर मुकदमे चलाये जायेंगे । कहते हैं, यह घटना तब हुई थी जब नेटालके सेठ सीमा पार करने से पहले क्रूगर्सडॉर्प गये थे । नेटालके सेठोंसे पूछा गया तो उन्होंने कहा कि न किसी भारतीयपर जुल्म किया गया है और न किसीको मारा-पीटा गया है। वे कहते हैं कि एक बार मामूली कहा-सुनी हो गई थी; बस अधिक से अधिक इतना ही हुआ। अगर बात ऐसी ही हो तो किसी भी भारतीयको इतनी अदूरदर्शिता क्यों दिखानी चाहिए कि वह हमें ही मारने के लिए सरकारके हाथों में एक हथियार बन जाये ? मुकदमा मूलतः ही झूठा है, इसलिए सरकारकी हार होगी ।

फिर भी ऐसी अफवाहोंका असर यह होता है कि भारतीयोंके कष्टके दिन तनिक और अधिक हो जाते हैं । हरएक भारतीयको यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि यह लड़ाई शरीर- बलकी नहीं है । हमें धमकी अथवा मार-पीटसे काम नहीं लेना है, शरीर-बलका उपयोग नहीं करना है । यही नहीं कि उसका उपयोग सरकारके विरुद्ध नहीं करना है, अपने भाइयोंके विरुद्ध भी नहीं करना है ।

यह लड़ाई आत्मबलकी है । इसलिए वह ईश्वरीय है । हम जानते हैं कि शरीरकी अपेक्षा मन अधिक बलवान है, और आत्मबल मनोबलसे भी बढ़कर है । वह सर्वोपरि है । हम इस

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