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२५३. पत्र: लॉर्ड ऍम्टहिलको

[लन्दन]
सितम्बर ९, १९०९

लॉर्ड महोदय,

श्रीमानके सुझावपर[१] मैंने लॉर्ड मॉर्लेके सचिवको पत्र[२] लिखा था। उनके उत्तरकी प्रतिलिपि संलग्न है।

मैंने लॉर्ड क्रू को शनिवारको पत्र[३] लिखा था। अभी कोई जवाब नहीं मिला है। उनको लिखे पत्रकी प्रतिलिपि भी साथ भेज रहा हूँ।

आपका, आदि,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ५०५८) से।

२५४. पत्र: मणिलाल गांधीको

[लन्दन]
सितम्बर ९, १९०९

चि॰ मणिलाल,

तुम्हारा पत्र मिला। श्री कैलनबैकने खर्च किया, इससे मुझे दुःख हुआ है। लेकिन मैं जानता हूँ कि उन्हें रोका नहीं जा सकता। यह ज्यादा अच्छा है कि वे पूछें तो उन्हें अपनी आवश्यकता न बताई जाये।

मुझे दुःख है कि चि॰ हरिलाल[४] तुम्हारे पास नहीं है। लेकिन मानता हूँ कि फिलहाल उसका कर्तव्य ट्रान्सवालमें ही रहनेका है।

तुम्हारी पढ़ाईका कोई समाचार नहीं मिला। अगर श्री कॉर्डिजको फोड़े हो गये हैं, तो मुझे विश्वास है, तुम उनके घर जाते होगे और उनकी देखभाल करते होंगे।

भाई पुरुषोत्तमदासने पत्र नहीं भेजा, यह भूल की है।

मोहनदासके आशीर्वाद

  1. लॉर्ड ऍम्टहिलने अपने ३ सितम्बर के पत्र में गांधोजीको लिखा था: "आप लॉर्ड मॉलेंसे मिलनेका अनुरोध वे प्रश्नको अभीतक समझ नहीं रहे हैं, लेकिन उन्हें इस सवालमें दिलचस्पी होनी ही चाहिए...संकेत भर कर दें कि आप सारी परिस्थितिको स्पष्ट करने के लिए भारत जाना चाहते हैं। फिर इसे विस्तारपूर्वक कर कह दें।"
  2. यह पत्र उपलब्ध नहीं है ।
  3. यह पत्र दरअसल सोमवार ६ सितम्बरको भेजा गया था, देखिए; "पत्र लॉर्ड क्रू के निजी सचिवको", पृष्ठ ३८९।
  4. हरिलाल गांधी छ: महीनेकी जेल काटनेके बाद ९ अगस्तको रिहा किये गये थे और उसके बाद मणिलालको देखने डर्बन चले गये थे; मणिलाल वहाँ बीमार। लेकिन तुरन्त ही आन्दोलन के सम्बन्ध में ट्रान्सवाल वापस आ गये थे। देखिए "तार : ब्रिटिश भारतीय संघको", पृष्ठ ३५०।