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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

(यूनियनके) बारेमें हमने कभी कोई बात नहीं [उठाई]। वस्तुतः जहाँतक समझौतेकी बातचीतका सम्बन्ध है, संघ [बनानेका कानून पास होने] के बाद जो काम हुआ है वह पहलेकी अपेक्षा अधिक ठोस है।

बम्बईके रूपमें आपने भारतकी जो झाँकी देखी है, उसपर आपने बहुत प्रसन्नता व्यक्त की है। मुझे आपकी यह प्रसन्नता कम करनेकी जरूरत नहीं मालूप होती; फिर भी शायद मैं कम कर दूँ। मैं समझता हूँ, आप इस बातको जानते हैं कि आप पाश्चात्य रंगमें रंगे भारतको देख रहे हैं, वास्तविक भारतको नहीं, जिसे, मुझे आशा है, आप वहाँ रहते देख सकते हैं; परन्तु आप देखेंगे, इसमें मुझे सन्देह है। मैं पिछली रात एडवर्ड कारपेंटरकी एक बहुत ही ज्ञानवर्धक रचना—'सिविलिजेशन: इट्स कॉज़ ऐंड क्योर'—पढ़ रहा था। मैंने पहला भाग समाप्त कर लिया। परन्तु उसे पढ़ते-पढ़ते मेरे मनमें आया कि मैंने जो चेतावनी दी है, वह दे दूँ। सभ्यताको हम जिस रूपमें जानते हैं, उसका विश्लेषण उन्होंने बहुत अच्छा किया है। यद्यपि उन्होंने सभ्यताकी बहुत कड़ी निन्दा की है, तथापि मेरी सम्मतिमें वह पूर्णरूपसे उपयुक्त है। उन्होंने जो उपाय सुझाया है वह अच्छा है; परन्तु मैं देखता हूँ कि वे स्वयं अपने तर्कसे भयभीत हैं। यह स्वाभाविक है, क्योंकि वे अपने तर्कके आधारके बारेमें निश्चित नहीं हैं। मेरी सम्मतिमें कोई भी मनुष्य जबतक भारतके हृदयका साक्षात्कार न कर ले, तबतक भविष्यका ठीक अनुमान नहीं दे सकता और न कोई उचित उपाय बता सकता है। अब आपने जान लिया है कि मेरे विचार मुझे किस दिशामें लिये जा रहे हैं। यदि आपने यह पुस्तक नहीं पढ़ी है और यदि वह आपकी आलमारीमें नहीं है तो वह आपको फीनिक्समें मिल जायेगी।

मुझे जोहानिसबर्गसे निम्न तार मिला है :

मजिस्ट्रेटने वरनॉनको अदालतसे यह कहनेपर फटकारा कि एशियाइयोंको देशसे खदेड़ देना गोरोंका कर्तव्य है। 'लीडर' 'स्टार' में कड़ी आलोचना।

हृदयसे आपका,

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५०५६) से।