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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
द्वारा खण्डन न होने की स्थितिमें एशियाइयोंकी दृष्टिमें सरकारी नीतिका द्योतक। रमजानमें मुसलमान कैदियोंको विशेष भोजन देने की प्रार्थना नामंजूर।

मेरे साथीकी और मेरी नम्र सम्मतिमें, इन तारोंसे प्रकट होता है कि ट्रान्सवालमें ब्रिटिश भारतीय समाज और प्रकटतः चीनी समाज भी, प्रतिरोध जारी रखनेका पक्का इरादा रखते हैं। मैं यह भी कहना चाहूँगा कि अगर चीनी संघ द्वारा भेजी गई गिरफ्तारियोंकी संख्याके सम्बन्धमें तारमें ही कोई गलती नहीं हो गई है तो यह पहला ही मौका है जब सरकारने इतनी बड़ी संख्यामें चीनियोंको गिरफ्तार करना उचित समझा है। आन्दोलनके दौरानमें मुझे एक भी ऐसा अवसर याद नहीं आता जब स्वयं भारतीय समाजमें से एक ही जगह और एक साथ इतने लोग गिरफ्तार किये गये हों। तथापि, तारोंसे यह बात साफ हो जाती है कि सरकार द्वारा उठाये कदमोंने एशियाई लोगोंको कमजोर करनेके बजाय उन्हें और ताकत दी है।

सरकार द्वारा श्री वरनॉनके इस आशयके वक्तव्यका खण्डन न किया जाना कि एशियाइयोंको देशसे खदेड़ बाहर करना गोरे लोगोंका कर्तव्य है कुछ दुर्भाग्यकी बात है। इस वक्तव्यका उल्लेख मैंने अपने १० सितम्बरके पत्रमें[१] भी किया है। इसी प्रकार, रमजानके महीनेमें, जिसमें मुसलमान अपने धर्मके अनुसार रोजे रखते हैं, मुसलमान कैदियोंको उनके भोजनके सम्बन्धमें विशेष सुविधाएँ देनेसे इनकार करना भी दुर्भाग्यपूर्ण है। मुझे विश्वास है कि लॉर्ड क्रू इसमें मुझसे सहमत होंगे। मैं उनका ध्यान इस बातकी ओर आकर्षित करता हूँ कि मैं जब पिछले साल फोक्सरस्टमें कैदकी सजा भुगत रहा था, तब मैंने देखा था कि रमजानमें मेरे उन साथी कैदियोंको, जो मुसलमान थे, विशेष सुविधाएँ दी गई थीं।

क्या आप यह पत्र लॉर्ड महोदयके सम्मुख पेश करनेकी कृपा करेंगे?

आपका, आदि,
मो॰ क॰ गांधी

कलोनियल ऑफ़िस रेकर्ड्स २९१/१४२; और टाइप की हुई दफ्त अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५०८२) से भी।

 
  1. देखिए पृष्ठ ३९८-९९। उपनिवेश कार्यालयकी २३ सितम्बरकी टिप्पणीमें लिखा गया था कि इस पत्र-व्यवहारकी नकल ट्रान्सवालके गवर्नरको भेजकर मुसलमान कैदियोंके प्रति व्यवहारके नियमोंके सम्बन्ध में उनकी राय मँगानी होगी।