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पत्र: एच॰ एस॰ एल॰ पोलकको


इस विषयमें थोड़ी सावधानी बरतनी होगी, क्योंकि यह स्पष्ट है, यद्यपि बात आश्चर्यजनक लगेगी, कि वहाँके लोग अनाक्रामक प्रतिरोधको बिलकुल नहीं समझते; और यदि हमें वहाँ कोई ऐसा निबन्ध लिखाना हो, जिसका कुछ भी लाभ हो सके तो उसमें भारतमें सार्वजनिक आन्दोलनोंपर अनाक्रामक प्रतिरोधके प्रभावोंपर पूरी गवेषणा होनी चाहिए। आप इस सम्बन्धमें प्रो॰ गोखले और अन्य लोगोंसे बातचीत कर सकते हैं। पुरस्कारकी रकम ५० पौंड यहाँ और ५० पौंड वहाँ हो सकती है, ताकि हम दोनों देशोंमें अच्छे लेखकोंको आकर्षित कर सकें। मैं श्री मायर, डॉ॰ क्लिफर्ड और अन्य लोगोंसे सलाह करनेवाला हूँ। यदि यहाँ सार्वजनिक रूपसे कोई कार्रवाई करनी हो तो इस पुरस्कार-निबन्धसे ट्रान्सवालके मामलेका व्यापक विज्ञापन हो जायेगा।[१]

नेटालके मित्रोंमेंसे श्री एच॰ एम॰ बदात पेरिस चले गये हैं। उनका अन्तिम लक्ष्य पक्का है।

मेरा खयाल है, श्री उमर और ईसा हाजी सुमार अभी आपके साथ ही हैं।

मुझे सूरतकी सभाके सम्बन्धमें आपका तार मिला। मैं समझता हूँ कि दूसरी सभाएँ भी अच्छी रही होंगी, और आपके सब प्रस्ताव भारतके वाइसरायको भेजे जा रहे होंगे।

डॉ॰ मेहता यहाँ हैं और कुछ दिन रहेंगे। वे रविवारको पेरिसके लिए और पहली तारीखको मार्सेलीज़से रंगूनके लिए रवाना होंगे। वे २३ अक्तूबरको रंगून पहुँचेंगे। आप जहाँ भी हों, मेरा खयाल है, आप डॉ० मेहतासे पत्र-व्यवहार करके रंगून हो आयें तो ज्यादा अच्छा रहेगा। डॉ॰ मेहता आपका पत्र मिलनेसे पहले आपको न लिख सकेंगे; क्योंकि उनको आपका पता नहीं मालूम होगा। उनका खयाल है कि आपके रंगून जानेका विचार अच्छा रहेगा। वहीं एक सभा की जा सकती है। किन्तु जो भी हो, मेरी चिन्ता यह है कि आप दोनों एक-दूसरेसे मिल लें। यदि श्री उमर आपके साथ जायें तो यह और भी अच्छा होगा। वहाँ कई मेमन और सूरती देशभक्त हैं। हमारे मित्र मदनजीत[२] तो वहाँ मिलेंगे ही, आप वहाँ संसारको सबसे ज्यादा स्वतन्त्र नारियोंको भी देख सकेंगे।[३] कलकत्तासे तीन दिन और मद्राससे चार दिन लगते हैं; इसलिए आप जहाँ भी हों वहाँसे रंगून जा सकते हैं। मैं नहीं समझता कि आप रंगूनमें एक सप्ताह से अधिक लगा सकते हैं। किन्तु यदि आपके पास समय कम रहे, तो कम समय दे सकते हैं। डॉ॰ मेहताका पता यह है: १४, मुगल स्ट्रीट, रंगून।

  1. पोलक इस विषयमें गोखलेसे सलाह करना चाहते थे। वह यह भी जानना चाहते थे कि प्रोफेसर भाण्डारकर निर्णायक बनना स्वीकार करेंगे या नहीं
  2. मदनजीत व्यावहारिक; दक्षिण आफ्रिकामें गांधीके एक साथी; १८९८ में गांधीजीकी सलाहपर डर्बनमें इन्टरनेशनल प्रिंटिंग प्रेस खोला, और उन्हींकी सहायतासे १९०३ में इंडियन ओपिनियन शुरू किया, १९०४ से जिसका संचालन गांधीजी करने लगे; देखिए खण्ड ३, पृष्ठ २७७।
  3. पोलकने उत्तर दिया: "मैं भी संसारकी सबसे ज्यादा स्वतंत्र नारियोंको देखनेकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ। फिर मैं मिलीसे उनके बारेमें बातचीत करूँगा, जैसी कल अडयार में लेडवीटरके साथ मैंने थोड़ी-सी की थी। यहाँसे जानेसे पहले मैं मलाबार भी जानेकी कोशिश करूँगा, ताकि नैयर जातिकी स्त्रियोंको देख सकूँ जो मुझे बताया गया है, एक पतिका परित्याग कर दूसरेका वरण करती हैं। और आप लोग जो एकके बाद दूसरा विवाह करनेवाले हैं, उन्हें भी मात कर देती हैं। मुझे तो लगता है कि वे ठीक ही करती हैं!"