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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

गुजरातीमें ऐसे पत्र ले रहा हूँ, जो आन्दोलनको उत्तेजन देनेवाले और भारतीय नारियोंकी निष्ठाकी सराहना करनेवाले हों। आपने मुझे सूचित किया था कि आप भारतीय स्त्रियोंकी एक सभा में भाषण देनेवाले हैं। आप उनसे जितने पत्र ले सकें, ले लें। आप उनसे अंग्रेजीमें भी पत्र लें। अंग्रेजीमें पत्र न लेनेका कोई कारण नहीं है। मैं गुजराती स्त्रियोंसे गुजरातीमें लिखे पत्र ले रहा हूँ, क्योंकि मेरी चिन्ता यह है कि वे अपनी मातृभाषाकी उपेक्षा न करें। एक पत्र श्रीमती दुबेका[१] है। वे अत्यन्त मनोहारी व्यक्तित्वकी उत्तर भारतीय महिला हैं। वे बम्बईमें रही हैं, इसलिए गुजराती पढ़ और लिख सकती हैं। दूसरा पत्र श्रीमती के॰ सी॰ दिनशाका[२] है। वे कुछ समय डर्बनमें रही हैं और अब अपने पतिके साथ यूरोपमें यात्रा कर रही हैं। आप श्रीमती पेटिट, श्रीमती रानडे और अन्य महिलाओंसे पत्र लें। कुमारी विंटरबॉटम अपनी सैरसे लौट आई हैं। मैंने सुझाव दिया है कि अंग्रेज नारियाँ सहानुभूतिका पत्र दें[३] और अनाक्रामक प्रतिरोधियोंकी पीड़ित पत्नियों और पुत्रियोंके कष्ट-मोचनके लिए थोड़ा-थोड़ा चन्दा भी दें। मैं इसी प्रकारकी बात वहाँके लिए भी सुझाना चाहता हूँ। मैं रकमपर जोर नहीं देता; बल्कि इस बातपर जोर देता हूँ कि प्रत्येक सुसंस्कृत भारतीय स्त्री ट्रान्सवालकी अपनी बहनोंके लिए कुछ दे, चाहे वह एक पैसा ही हो। मैं इसका भारतमें अधिकतम प्रचार करूँगा। कोई कारण नहीं है कि स्त्रियोंकी एक सभा भी क्यों न की जाये। उसमें सिर्फ प्रस्ताव पास किये जायें।[४]

अनाक्रामक प्रतिरोधके सम्बन्धमें जैसे हमने जोहानिसबर्गमें पुरस्कारकी घोषणा करके निबन्ध लिखाये थे, वैसा ही एक निबन्ध मैं यहाँ और एक भारतमें लिखानेका विचार कर रहा हूँ। मैंने डॉ॰ मेहताके सम्मुख प्रस्ताव रखा था कि पुरस्कार वे दें। उन्होंने इस बारेमें विचार कर लिया है और वे पुरस्कार देनेके लिए रजामन्द हैं। मैं इसकी नियमावली बना लूंगा और उसकी एक प्रतिलिपि आपको भेजूँगा, किन्तु यह अगले सप्ताह करूँगा। इस बीच आप इन प्रश्नों पर विचार करें:

१. भारतमें निर्णायक कौन-कौन हों?
२. पुरस्कार किसके नामसे दिया जाये?
  1. रामकुमारी दुबेका एक पत्र ११-९-१९०९ के इंडियन ओपिनियनमें छपा था।
  2. खुरशेदबाई कैकुबाद कावसजी दिनशाका एक पत्र २३-१०-१९०९ के इंडियन ओपिनियन में छपा था।
  3. कुमारी फ्लॉरेंस विंटरबॉटमका एक पत्र २५-१२-१९०९ के इंडियन ओपिनियन में "सत्याग्रहियोंको पत्नियोंको सन्देश" शीर्षकसे प्रकाशित हुआ था। इसके अलावा हिल्डा मार्गरेट हाउसिनका एक पत्र ११-१२-१९०९ के इंडियन ओपिनियन में इस शीर्षकसे छपा था: "एक अंग्रेज स्त्रीका पत्र: सत्याग्रहियोंकी पत्नियों के नाम।"
  4. पोलकने उत्तरमें लिखा था "यह जानकर प्रसन्नता हुई है कि आप लन्दनकी भारतीय महिलाओंसे सम्पर्क बनाये हुए हैं। मैं नटेसनके द्वारा श्रीमती सरोजिनी नायडूकी एक कविता पानेकी कोशिश कर रहा हूँ। श्रीमती रानडेकी सहयोगी महिलाओंने ट्रान्सवालकी महिलाओंके लिए सहानुभूतिका एक प्रस्ताव पास किया है जो जल्दी उन्हें भेज दिया जायेगा। उनमें से कुछ महिलाएँ नियत समयपर इं॰ ओ॰ के लिए लिखकर भी भेजेंगी। श्रीमती पेटिंट स्वयं तो बड़ी खुशीसे पत्र भेजेंगी और मैं उनसे अनुरोध करूँगा कि वे दूसरी महिलाओंसे भी ऐसा करनेके लिए कहें। महिलाओं के एक संगठन सेवा-सदनने स्त्रियों की सहायता के लिए ५० रुपये ट्रान्सवाल भेने हैं। वे और भी चन्दा देंगी। बम्बई में स्त्रियोंकी सभामें प्रस्ताव पास करना ठीक नहीं था, क्योंकि बहुत-से अधिकारियोंकी पत्नियाँ भी वहाँ उपस्थित थीं।"