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पत्र: लिओ टॉल्स्टॉयको

आये थे और यहाँ आनेपर स्वभावतः वे लॉर्ड मॉर्ले और अन्य नेताओंसे, मुख्यतः मुसलमानोंके प्रतिनिधित्वके सम्बन्धमें मिल रहे हैं। आप कृपा करके अखबारोंको देखते रहें और ज्यों ही वे आयें त्यों ही, उनसे पत्र व्यवहार करें। उनसे आपको बहुत बड़ी सहायता मिलेगी।

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ५१०२) से।

२८८. पत्र: लिओ टॉल्स्टॉयको

लन्दन
अक्तूबर १, १९०९

महोदय,

ट्रान्सवाल (दक्षिण आफ्रिका) में लगभग पिछले तीन वर्षोंसे जो-कुछ चल रहा है उसके प्रति मैं आपका ध्यान आकर्षित करनेकी घृष्टता कर रहा हूँ।

उक्त उपनिवेशमें ब्रिटिश भारतीयोंकी आबादी कोई १३,००० है । ये भारतीय विगत कई वर्षोंसे अनेक कानूनी निर्योग्यताओंसे त्रस्त रहे हैं। उपनिवेशमें रंगके, तथा कुछ बातोंमें एशियाइयोंके विरुद्ध सख्त पूर्वग्रह हैं। जहाँतक एशियाइयोंका सवाल है, व्यापारिक ईर्ष्याका इसमें काफी बड़ा हाथ है। इस पूर्वग्रहकी पराकाष्ठा आजसे तीन वर्ष पूर्व एक कानून[१] बननेके साथ हुई। मैंने और अन्य बहुत से लोगोंने भी ऐसा माना कि यह कानून अपमानजनक है, और इसका मंशा इसके प्रभावक्षेत्रमें आनेवाले लोगोंको कापुरुष बना देना है। मुझे लगा कि ऐसे कानूनके आगे झुकना सच्चे धर्मकी भावनासे विसंगत है। मैं और मेरे कुछ साथी बुराईका विरोध न करनेके सिद्धान्तमें दृढ़ आस्था रखते थे और आज भी रखते हैं। मुझे आपकी कृतियोंके अध्ययनका भी सौभाग्य प्राप्त हुआ था और उनकी मेरे मनपर गहरी छाप पड़ी है। पूरी तरहसे परिस्थिति समझायी जानेपर ब्रिटिश भारतीयोंने यह सलाह मान ली कि हमें इस कानूनके आगे नहीं झुकना चाहिए, बल्कि इसे भंग करनेके बदलेमें जेल या अन्य जो सजा कानूनन दी जाये, उसे स्वीकार करना चाहिए। फलस्वरूप भारतीय आबादीमें से करीब आधे लोग, जो संघर्षकी कठिनाइयोंको सहने और जेल जीवनके कष्टोंको उठानेमें समर्थ नहीं हुए, कानूनके आगे झुकनेके बजाय, जिसे उन्होंने अपमानजनक माना है, ट्रान्सवाल छोड़कर चले गये। बचे हुए लोगोंमें से करीब २,५०० लोगोंने आत्मप्रेरणासे जेल जाना स्वीकार किया है। कुछ लोग तो पाँच-पाँच बार जेल गये हैं। जेलकी सजा ४ दिनसे लेकर ६ महीने तक की रही है। ज्यादातर लोगोंको सजाएँ सपरिश्रम दी गई हैं। अनेक आर्थिक दृष्टिसे बर्बाद हो गये हैं। इस समय ट्रान्सवालकी जेलोंमें सौसे अधिक सत्याग्रही हैं। इनमें कुछ लोग बहुत गरीब हैं—रोज कुआँ खोदना, रोज पानी पीना, यह उनकी अवस्था रही है। परिणामस्वरूप उनके परिवारोंका पालन सार्वजनिक चन्देसे करना पड़ा है। यह चन्दा भी अधिकांशतः सत्याग्रहियोंसे ही प्राप्त हुआ। ब्रिटिश भारतीयोंपर इसके कारण बहुत बोझ आ पड़ा है। किन्तु मेरी समझमें उन्होंने अपनेको अवसरके अनुकूल सिद्ध कर दिया है। संघर्ष

  1. टान्सवाल एशियाई कानून संशोधन अध्यादेश; देखिए खण्ड ५ और ६।