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पत्र: लिओ टॉल्स्टॉयको

आपने इस प्रश्नका विशेष अध्ययन किया है अथवा नहीं। भारतमें करोड़ों लोगोंका पुनर्जन्म या देहान्तरणमें युगोंसे गहरा विश्वास रहा है और चीनमें भी यही बात है। कहा जा सकता है कि अनेक व्यक्तियोंको तो इसका अनुभव भी हुआ है और उनके लिए अब यह तर्कपर आधारित मान्यता नहीं है इससे जीवनके अनेक रहस्य तर्कसंगत ढंगसे समझमें आ जाते हैं। ट्रान्सवालके जेल जीवनके कष्ट झेलनेवाले अनेक सत्याग्रहियोंको इससे सांत्वना मिली है। आपको ऐसा लिखनेमें मेरा उद्देश्य आपके निकट सिद्धान्तकी सत्यता प्रमाणित करना नहीं है; बल्कि यह पूछना है कि आपने जिन-जिन बातोंसे पाठकोंको विरत करना चाहा है, क्या आप उनमें से केवल 'पुनर्जन्म' शब्दको हटानेकी कृपा करेंगे [१] आपने उक्त पत्र में आपने विस्तार से 'कृष्ण'[२] को उद्धत किया है और बहुतसे अनुच्छेदोंके हवाले दिये हैं। ये उद्धरण आपने जिस पुस्तकमें से दिये हैं, यदि आप उसका नाम दे सकें तो आपका आभार मानूँगा।

मेरा यह पत्र बहुत लम्बा हो गया। मैं जानता हूँ कि जो आपका आदर करते हैं और अनुसरण करना चाहते हैं उन्हें आपका समय लेनेका कोई अधिकार नहीं है, बल्कि उनका कर्तव्य यह है कि जहाँतक बने आपको कष्ट न दें। मैं आपके निकट नितान्त अपरिचित हूँ, फिर भी मैंने सत्यके हितको दृष्टिगत करके आपको यह पत्र लिखनेकी धृष्टता की है और उन समस्याओंके बारेमें आपका मार्गदर्शन चाहा है जिन्हें हल करना आपने अपने जीवनका ध्येय माना है।[३]

विनीत,
मो॰ क॰ गांधी

[काउंट लिओ टॉल्स्टाय


यास्नाया पॉल्याना


रुस]

[अंग्रेजीसे]

'टॉलस्टॉय और गांधी' डा॰ कालिदास नाग, प्रकाशक पुस्तक भंडार पटना, पृष्ठ ५९-६२।

 
  1. टॉलस्टॉयने स्वयं ऐसा करना स्वीकार नहीं किया। अलबत्ता कहा कि कि यदि आप न चाहें तो अपने पत्रमें प्रकाशित करते हुए उस हिस्सेको छोड़ दें। देखिए परिशिष्ट २७।
  2. उन दिनों कैलिफोर्निया में निवास करनेवाले बाबा प्रेमानन्द भारती नामक एक बंगाली सन्त द्वारा सन् १४०४ में लिखी एक पुस्तिका।
  3. टॉल्स्टॉयने इस पत्रका उत्तर ७ अक्तूबरको दिया था; देखिए परिशिष्ट २७।