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लन्दन

हम सिर्फ पत्थर ही नहीं फेंकेंगी, बल्कि इससे आगे भी बढ़ेंगी; हम आग लगायेंगी और हत्या करेंगी। यदि सब ऐसा ही करने लगें तो इसका अर्थ यह हुआ कि जब-कभी कोई उचित या अनुचित अधिकार लेना चाहे और वह उसे न मिले, तो वह हत्या तक कर सकता है। ऐसा हो तो कौमें नष्ट हो जायेंगी। वे स्त्रियाँ अब उन कष्टोंको सहन करना नहीं चाहतीं जो उन्हें उठाने पड़ते हैं। जेलसे तुरन्त छूटनेकी नीयतसे उन्होंने खाना खानेसे इनकार कर दिया। सरकार अब उनको जबरदस्ती खाना खिलाने लगी है। अधिकारी पेटमें नली डालकर उसके द्वारा भोजन पहुँचाते हैं। यदि स्त्रियाँ शरीर-बलसे काम लेंगी तो उनके विरुद्ध शरीर-बलका प्रयोग किया ही जायेगा। ऐसा होगा तो इंग्लैंड रहने योग्य देश न रह जायेगा। यदि ये ही स्त्रियाँ सत्याग्रहपर कायम रहें तो कोई परेशानी न होगी। इससे मताधिकार मिलनेमें देर भले ही लगे, किन्तु उनकी कार्रवाईसे सारे समाजको खतरा पैदा न होगा। अगर उन्होंने भूल की है तो उसका फल उन्हींको भोगना होगा। उन्होंने ये उत्पात आरम्भ किये हैं; इससे बहुत-सी स्त्रियाँ उनके विरुद्ध हो गई हैं। एक स्त्री तो लिखती है कि यदि हत्या या मार-काटसे मताधिकार मिलता हो तो उसे वह नहीं चाहिए। ये स्त्रियाँ कहती हैं कि वर्तमान कानून-निर्माता धूर्त हो गये हैं। लेकिन, यदि वे मारकाट करके सत्ता लेंगी तो उनका शासन कुछ अच्छा होगा, ऐसा नहीं माना जा सकता। मैं कह चुका हूँ कि इन स्त्रियोंके उदाहरणोंसे हमें मार-काट आदिसे अलग रहनेकी शिक्षा लेनी है। उनसे सीखने योग्य दूसरी बात उनकी बहादुरी है। वे फिलहाल जिस उपायका आश्रय ले रही हैं, वह बुरा है; किन्तु वे जिस दृढ़तासे लड़ रही हैं, कष्ट उठा रही हैं और पैसे इकट्ठा कर रही हैं, वह सब अनुकरणीय है। वे किसी बातसे नहीं हारतीं। उनकी प्रतिज्ञा है कि वे मताधिकार लेकर ही छोड़ेंगी। और उस प्रतिज्ञाके अनुसार वे धन देती हैं और प्राण भी। जब स्त्रियोंको अपने अधिकारोंके लिए अपनी ही जैसी चमड़ीके लोगोंसे इतना जूझना पड़ता है तब फिर भारतीय सत्याग्रहियोंको अधिक समय तक जूझना पड़े, कैदमें रहना पड़े, मार खानी पड़े और भूखा रहना पड़े तो इसमें आश्चर्य ही क्या है?

टॉल्स्टॉयका सत्याग्रह

काउंट टॉल्स्टॉय एक रूसी सामन्त हैं। कभी उनके पास बहुत सम्पत्ति थी। उनकी आयु अब लगभग ८० वर्षकी है। उन्होंने बहुत दुनिया देखी है। वे पाश्चात्य लेखकोंमें श्रेष्ठ माने जाते हैं। सत्याग्रहियोंमें वे प्रमुख गिने जा सकते हैं।

उनकी बात मानकर हजारों लोग जेल गये हैं और अब भी जा रहे हैं। रूसी सरकार उनसे डरती है। उनके लेख बहुत तीखे होते हैं। वे लोगोंको निर्भय होकर यह सलाह देते हैं कि वे रूस-सरकारके कानूनको न मानें और फौजमें भर्ती न हों, आदि। उनके लेखोंको छापने नहीं दिया जाता। फिर भी उनके लेख बहुत छपते हैं। इससे रूस सरकारने उनके शिरस्तेदारको गिरफ्तार कर लिया है और जेल भेज दिया है। काउंट टॉल्स्टॉयने इस कार्रवाईकी आलोचना करते हुए जो-कुछ लिखा है[१] वह जानने लायक हैं; इसलिए उसका सार नीचे देता हूँ:

रूस-सरकारने मेरे शिरस्तेदारको गिरफ्तार कर लिया है। उसने इसी प्रकार बहुतोंको गिरफ्तार किया है; परन्तु यह घटना मेरी आँखोंके सामने घटित हुई,
  1. यह पत्र डेली न्यूजमें छपा था और यह एल॰ डब्ल्यू॰ रिचके नाम लिखा गया था।