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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इसलिए मेरे ऊपर इसका प्रभाव ज्यादा हुआ। ठीक देखें तो उसे मुझको गिरफ्तार करना था, क्योंकि उसने मेरे ही लेखोंका प्रचार किया है।

जब पुलिसने गुसेफको पकड़ा तब मैं रो पड़ा।[१] यह रोना उसपर दया आनेसे या उसकी हालत देखकर नहीं आया। उसपर दया आनेका तो कोई कारण ही नहीं था, क्योंकि मैं जानता था कि गुसेफको अपने आत्मबलपर भरोसा है। जो व्यक्ति अपने आत्मबलका भरोसा करता है उसको बाहरी बातें प्रभावित नहीं कर सकतीं। ऐसा व्यक्ति जानता है कि उसका सच्चा सुख किस बातमें है। मेरे आँसू हर्षके आँसू थे, क्योंकि मैंने देखा कि गिरफ्तार किये जानेपर गुसेफने प्रसन्नता प्रकट की और वह मुखपर मुसकान लेकर जेल गया। जिस व्यक्तिको अधिकारियोंने पकड़ा है वह स्नेही, ईमानदार और किसीको कष्ट न पहुँचानेवाला है। उस आदमीको रातमें गिरफ्तार किया गया। वह ऐसी जेलमें रखा गया है जहाँ रतवा (टाइफस) ज्वरकी छूत लगती है और उसको निर्वासित करके ऐसी जगह भेजा जायेगा जहाँ लोगोंको बहुत कष्ट सहने पड़ते हैं।

अधिकारी मुझे गिरफ्तार करनेसे डरते हैं। मैं लोगोंसे कहता हूँ कि हत्या ठीक नहीं है; यह उनको पसन्द नहीं है। मुझे पाँच-सात सालके लिए जेलमें बन्द कर दें तो मैं बोलने और लिखनेसे रुक जाऊँ। किन्तु जैसे ये अधिकारी मुझे पागल मानते हैं, वैसे ही यूरोपके दूसरे लोग नहीं मानते। इसलिए अधिकारी मुझे गिरफ्तार नहीं करते, मेरे लोगोंको गिरफ्तार करते हैं।

किन्तु ऐसा अत्याचार व्यर्थ है। मैं मानता हूँ कि मेरे विचार सच्चे हैं और उनका प्रचार करना मेरा धर्म है। मैं इसीके लिए जीता हूँ। इसलिए जबतक मेरे शरीरमें प्राण हैं तबतक मैं अपने विचारोंको प्रकट करता ही रहूँगा। जैसे गुसेफकी मार्फत मैं अपने लेख भेजता था, वैसे ही अब दूसरोंकी मार्फत भेजूँगा। गुसेफकी जगह लेनेके लिए बहुत से लोग तैयार हैं। और जब मेरे पास काम करनेके लिए आनेवाले सभी लोगोंको वे पकड़ लेंगे तो मैं अपने लेख उन लोगोंको स्वयं भेजूँगा अथवा दूँगा, जिन्हें उनकी जरूरत होगी।

किन्तु मैं यह पत्र सिर्फ अपनी या गुसेफकी खातिर नहीं लिखता । जो हजारों लोगोंपर अत्याचार करते हैं, उनको कैदमें भेजते हैं या फाँसी देते हैं, उनके बारेमें क्या कहूँ? जो अत्याचारोंसे कुचल गये हैं उनकी आत्माएँ उन्हें शाप दे रही हैं। उनकी हाय अत्याचारियोंको लग रही है। कुछ अत्याचारी समझते होंगे कि उनके कामोंसे आमलोगोंको लाभ होता है। ऐसे अत्याचारियोंपर मुझे दया आती है। उन्हें समझना चाहिए। वे ईश्वरकी दी हुई आत्मबलकी पूँजीको बर्बाद कर रहे हैं। उनको सच्चे सुखका स्वाद चखनेको नहीं मिलता। गुसेफ और मेरे सम्बन्धमें जो घटना घटित हुई है, वह असलमें देखें तो कुछ भी नहीं है। किन्तु इस अवसरपर

  1. यह घटना अगस्त १८, १९०९ को हुई थी।