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भाषण: हैम्पस्टेड में

कड़े शब्दोंका प्रयोग भी करना होगा। जिस पद्धतिमें में पला-पुसा हूँ, उसके विरुद्ध भी कहना होगा। अगर आपकी भावनाओंको मेरे कथनसे चोट पहुँचे तो आशा है, आप मुझे क्षमा करेंगे। मुझे ऐसी कई धारणाओंका खण्डन करना होगा, जो मुझे और मेरे देशके लोगोंको प्रिय रही हैं और शायद आपको भी प्रिय रही हों। इसके बाद उन्होंने किपलिंगकी कविताकी उन दो पंक्तियोंका उल्लेख किया जिनका अर्थ है, "पूर्व पूर्व है और पश्चिम पश्चिम; ये दोनों कभी न मिल पायेंगे।" फिर उन्होंने कहा, मैं समझता हूँ कि यह सिद्धान्त निराशावादका सिद्धान्त है और मानव-विकाससे मेल नहीं खाता। मुझे लगता है कि इस तरह के सिद्धान्तको मान्य करना मेरे लिए बिल्कुल असम्भव है। अंग्रेजीके एक दूसरे कवि टेनिसनने अपनी "विजन" ["स्वप्न"] शीर्षककी कवितामें स्पष्ट भविष्यवाणी की है कि पूर्व और पश्चिम मिलेंगे। चूँकि उस "स्वप्न" में मेरा विश्वास है, इसीलिए मैं दक्षिण आफ्रिका के लोगोंके सुख-दुःखका साथी बन गया हूँ। वे लोग वहाँ बहुत बड़ी कठिनाइयोंमें रह रहे हैं। मेरा खयाल है, दोनों जातियोंके लोग एक-दूसरेसे बराबरोका बरताव करते हुए साथ-साथ रह सकते हैं। इसीलिए में दक्षिण आफ्रिकामें रहता हूँ। अगर मेरा विश्वास किपलिंगके सिद्धान्तमें होता तो मैं वहाँ कभी न रहा होता। अंग्रेजों और भारतीयोंके, आपसमें बिना किसी खटपटके, एक ही घर रहने के उदाहरण जहाँ-तहाँ मिलते हैं और जो बात व्यक्तियोंपर लागू होती है, वही जातियोंपर भी लागू हो सकती है। एक हद तक यह सच है कि इन संस्कृतियोंमें मिलता-जुलता कुछ भी नहीं है। जापानियों और यूरोपीयोंके बीचको दीवारें दिन-प्रति-दिन ढहती जा रही हैं, क्योंकि जापानियोंने पाश्चात्य सभ्यताको पचा लिया है। मेरे खयालसे आधुनिक सभ्यताका मुख्य लक्षण है, आत्मासे अधिक शरीरको चिन्ता और शरीरकी प्रतिष्ठाके लिए सर्वस्वका समर्पण। रेल, तार और टेलीफोन क्या पाश्चात्य लोगोंके नैतिक उत्थानमें सहायक हैं? जब में भारतपर निगाह डालता हूँ तो अंग्रेजोंके राज्यमें वहाँ क्या दिखाई देता है? भारतपर आधुनिक सभ्यता राज्य कर रही है। उसने क्या किया है? जब मैं यह कहता हूँ कि आधुनिक सभ्यतासे भारतकी कोई भलाई नहीं हुई है तो, मुझे आशा है, मेरे इस कथनसे आपको सदमा न पहुँचेगा। वहाँ रेलों, तारों और टेलीफोनोंका जाल बिछा है; आपने कलकत्ता, मद्रास, बम्बई, लाहौर और बनारस-जैसे नगर खड़े कर दिये हैं, जो स्वतन्त्रताके नहीं, दासताके सूचक हैं। मैंने देखा है कि यातायात के इन आधुनिक साधनोंने हमारे तीर्थों—पवित्र स्थानों–को अपवित्र बना दिया है। मैं सभ्यताको इस उन्मत्त दौड़के पहलेके बनारसकी कल्पना कर सकता हूँ। और आजका बनारस भी मैंने अपनी इन आँखोंसे देखा है जो एक अपवित्र नगर है। मैंने जो चीज भारतमें देखी वही चीज यहाँ भी देखी है। इस उन्मत्त सरगरमीने हमारी चलें उखाड़ दी हैं। यद्यपि में स्वयं भी इसी व्यवस्थामें रह रहा हूँ, फिर भी मुझे आपसे वही कहना जरूरी मालूम होता है जो कह रहा हूँ। मैं जानता हूँ कि जबतक अंग्रेज अपने तरीके न बदलें, भारतमें दोनों जातियाँ साथ-साथ नहीं रह सकतीं। आपने हिन्दू तीर्थस्थानोंमें आखेट और आमोद-प्रमोद करके हिन्दुओंकी धार्मिक भावनाको ठेस पहुँचाई है। यदि यह उन्माद-भरी दौड़ बन्द नहीं की जाती, तो संकट अवश्य आयेगा। हमारे सम्मुख एक मार्ग यह हो सकता है कि हम आधुनिक सभ्यताको अपना लें; लेकिन मैं तो यह हगिज नहीं कह सकता कि हमें कभी भी यह सभ्यता अपनानी चाहिए। ऐसा हुआ तो भारत संसारका क्रीड़ा-कन्दुक बन जायेगा और दोनों राष्ट्र एक-दूसरेपर टूट पड़ेंगे। भारत अब भी नष्ट नहीं हुआ है; वह काहिल हो गया है। ऐसी बहुत-सी बातें