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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


यह कविता उतनी अच्छी तो नहीं है, जितनी पहली कविता है, फिर भी इसम विचार अच्छा है; शब्दोंकी रचना भी अच्छी है। इस कविताकी भावना सत्याग्रहीपर लागू होती है। इस भावना—इस फकीरी—के बिना सत्याग्रही होना कठिन है। भारतकी सेवाके लिए अलख धूनी रमानी है। तभी हम उस कर्जको चुका सकेंगे जो हमने भारत में जन्म लेकर अपने ऊपर चढ़ा लिया है। जब यह गम्भीर आवाज हमारे हृदयसे निकलेगी कि हमारा जीवन भारतके लिए है, तभी ईश्वर हमारी प्रार्थना सुनेगा। वह हृदयको देखनेवाला है। वह शब्दोंसे धोखा नहीं खा सकता। यह खेल तो सचाईका है। इसमें नटका काम नहीं है।

भारतकी भाषाएँ

ऊपरकी गुजराती कविताओंको पढ़कर यह खयाल पैदा होता है कि ऐसे विचारोंको ऐसे माधुर्यके साथ अंग्रेजीमें प्रकट करना कठिन है, क्योंकि सत्याग्रह और फकीरी—ये दोनों अंग्रेजोंके खूनमें नहीं हैं। जो भाषा इतनी सुन्दर है, उसका उपयोग हम क्यों न करें? जब हम भारतकी सभी भाषाओंमें देशभक्तिकी भावना भरेंगे, तभी भारतीय जागृत होंगे। श्री लॉयड जॉर्ज़, जिनके विषयमें मैं लिख चुका हूँ, वेल्सके एक परगने में उत्पन्न हुए हैं। वेल्स इंग्लैंडका एक तालुका है। वहाँ एक अलग भाषा बोली जाती है। लॉयड जॉर्ज़ यह प्रयत्न कर रहे हैं कि वेल्सके बालक वेल्सकी भाषाको न भूलें। वेल्सके लोगोंको अपनी भाषाकी रक्षा करनेकी जितनी आवश्यकता है, उसके मुकाबले भारतीयोंको भारतीय भाषाओंकी रक्षा करनेकी कितनी ज्यादा जरूरत और गरज होनी चाहिए?

[गुजरातीसे]
इंडियन ओपिनियन, १३-११-१९०९

३१५. पत्रः एन॰ एम॰ कूपरको

[लन्दन]
अक्तूबर २१, १९०९

प्रिय श्री कूपर,

क्या आप श्री डोककी पुस्तक इस प्रकार भेज देनेकी कृपा करेंगे: २४ प्रतियाँ डॉक्टर मेहता, १४ मुगल स्ट्रीट, रंगून, भारतको; २५० प्रतियाँ मेसर्ज़ नटेसन ऐंड कम्पनी, पुस्तक विक्रेता, मद्रास, भारतको।

२५० प्रतियाँ मैनेजर, इन्टरनेशनल प्रिंटिंग प्रेस, डर्बन, नेटाल, दक्षिण आफ्रिका (डाकका पता: बॉक्स १८२, डर्बन, नेटाल) को।

आपका विश्वस्त,

श्री एन॰ एम॰ कूपर,


१५४, हाई रोड,
इलफोर्ड


इसेक्स

टाइप की हुई दफ्तरी अंग्रेजी प्रति (एस॰ एन॰ ५१४०) से।