पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/५९६

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परिशिष्ट २

सन् १९०७ के प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियमके खण्ड ६ के अन्तर्गत
किसी व्यक्तिके निष्कासनके लिए वारंट

चूँकि.......को सन् १९०७ के अधिनियम २, खण्ड ८, उपखण्ड ३ के अन्तर्गत ट्रान्सवाल छोड़कर चले जानेका आदेश दिया गया था और उसने इस आदेशका पालन नहीं किया है, तुम्हें महामहिम महाराजा साहिबके नामपर हुक्म दिया जाता है कि तुम पूर्वोक्त.....को तुरन्त गिरफ्तार कर लो और उसे उपनिवेशसे बाहर निकाल दो और उसे ट्रान्सवाल-नेटालकी सीमापर उस जगह छोड़ दो जहाँ फोक्सरस्ट और चार्ल्सटाउनको जोड़नेवाली रेलवे लाइन पूर्वोक्त सीमाको काटती है।

(ह॰) जे॰ सी॰ स्मट्स

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ५-९-१९०८

परिशिष्ट ३

रंगके प्रश्नपर श्री पी० डंकनका भाषण

श्री पैटिक डंकन सी॰ एम॰ जी॰ ने महिला-संघ (लीग ऑफ वीमेन) की रोज बैंक शाखाके आमन्त्रणपर उसकी सालाना बैठकमें रंग-भेदके प्रश्नपर भाषण दिया। उनका भाषण इसी ५ तारीखके 'स्टार' में दिया गया है। हम उसके महत्वपूर्ण अंश नीचे उद्धृत करते हैं:

जिस देशके बारेमें यह माना जाता है कि वहाँ राजनीतिक स्वतंत्रता है, उसमें आबादी के सबसे बड़े हिस्सेके राजनीतिक अधिकार बिल्कुल छीन लेना बहुत कठिन मामला है। यह तो गुलामीकी-सी हालत हुई। और, गुलामीकी-सी हालतमें पड़ी किसी हीन जातिके बलपर जीनेवाली कोई जाति कभी दीर्घकालतक जीवित नहीं रह सकी। यह स्थिति उन्नत और हीन दोनों जातियोंके लिए बुरी है। जहाँ आबादीका एक छोटा उन्नत भाग अपनेसे बड़े हीन भागके कामपर जीवित रहता है और उसको राजनीतिक अधिकार नहीं देता वहाँ हम देखेंगे कि इस तरहकी हालत ज्यादा दिनतक नहीं टिकती। इस समय समाज सभ्यताकी जिस अवस्थामें है उसमें हमारे लिए यह कहना सम्भव नहीं है कि अगर किसी आदमीकी चमड़ी उत्तम गोरे रंगकी नहीं है तो वह राजनीतिक अधिकारोंसे वंचित कर दिया जायेगा—फिर चाहे वह कितना ही पढ़ा-लिखा क्यों न हो और सभ्यता में हर तरहसे कितनी ही प्रगति भी क्यों न कर चुका हो। अगर हम राजनीतिक अधिकारोंके लिए रंगको कसौटी बनायेंगे तो इसमें कोई सीमा-रेखा निश्चित करना बहुत कठिन होगा। हम देखेंगे कि ऐसा करनेसे ऐसे बहुत-से लोगोंकी हम बहुत कष्ट पहुँचा रहे हैं, जो हमारी ही तरह सर्वथा सभ्य, शिक्षित और जिम्मेदार नागरिक हैं। अतः बहुत-से लोगोंके प्रति बहुत गम्भीर अन्याय किये बिना और उन्हें बहुत भारी हानि पहुँचाये बिना मताविकारके लिए प्रतिबन्धके रूपमें रंग-भेदको कायम रखना मुश्किल है।

इस प्रश्नका एक सामाजिक पहलू भी है। हमें हर आदमीके साथ कानूनकी निगाह में बराबर न्याय करना चाहिए, फिर उसका रंग चाहे जो हो। हमें उसे अपनी हालत सुधारनेका मौका देना चाहिए। वह जिन तरीकोंसे अपनी हालत सुधारता है वे कितने ही अजीव या अटपटे क्यों न हों; हमें उन्हें तिरस्कारकी दृष्टिसे नहीं देखना चाहिए। यह नहीं सकता कि हम उसकी मेहनतसे लाभ उठायें और उसे अपना सामाजिक स्तर