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परिशिष्ट

ऊँचा करनेका अवसर देने से इनकार करें। इस देश में रंगके कारण लोगों के विरुद्ध बेहद द्वेष-भाव है। गोरे इस देश में प्रमुख हिस्सेदार होने चाहिए, इस सिद्धांतको लागू करने में उन्हें रंगदार लोगोंको भी उनके अधिकारोंके अनुसार रहने देना चाहिए। हमें उन्हें उनकी क्षमता के अनुसार पूरा विकास करने देना चाहिए और यह अपेक्षा न करनी चाहिए कि वे बोझा ढोनेवाळे पशु ही बने रहें और उनकी कोई दूसरी स्थिति हो ही नहीं।

हमें उन्हें ज्यादा साफ तरीकेसे और ज्यादा अच्छी तरह रहनेका हरएक मौका देना चाहिए। दक्षिण आफ्रिका में शहरों के बाहर बनी हुई कई जगहें, जो बस्तियाँ (लोकेशन) कही जाती हैं, सभ्यताको कलंक लगानेवाली हैं। अगर हम वतनी लोगोंको ऐसी गन्दी जगहोंमें रहने के लिए मजबूर करें तो उनसे शिष्ट नागरिक बननेकी अपेक्षा नहीं रख सकते। इम जब यह शिकायत करते हैं कि वे समाजके लिए खतरनाक हैं तब हमें यह याद रखना चाहिए कि अगर हम किसी आदमीसे जानवरकी तरह रहनेकी अपेक्षा करते हैं तो वह जानवर ही हो जायेगा। लेकिन अगर हम यह चाहते हैं कि वह आदमी बने तो इमें उससे ठीक तरहका बरताव करना चाहिए। हम वतनियोंको बर्बरतापूर्ण दण्ड देकर ही अपराध करनेसे नहीं रोक सकेंगे। हम उन्हें अपनी जगह सामाजिक जीवनमें उठनेकी प्रेरणा दें। उसी जगह उनका आदमीके रूपमें सम्मान करें। प्रश्न कठिन है। कुछ लोग उन्हें अलग रखने की बात करते हैं । यह असम्भव है। दोनों जातियोंको साथ-साथ रहना है; और इस देशमें जो गोरे लोग हैं वे दोनों जातियोंके भविष्यके ट्रस्टी हैं। इसलिए उन्हें यह सोचना है कि दोनों जातियाँ किस तरह साथ-साथ रहें जिससे दोनोंका हित हो।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, १०-९-१९०८

परिशिष्ट ४

पंजीयन कानूनकी मंसूखीके बारेमें हलफनामे

(१) एच॰ एस॰ एल॰ पोलकका हलफनामा

मैं जोहानिसबर्गवासी हेनरी सॉलोमन लियोन पोलक संजीदगी और सचाईसे इसके द्वारा निम्न घोषणा करता हूँ:

मैं एक ब्रिटिश नागरिक हूँ। मेरा जन्म इंग्लैंडमें हुआ था और मैं ट्रान्सवालमें बस गया हूँ। मैं इस उपनिवेशकी संसदका रजिस्टर्ड मतदाता हूँ; ट्रान्सवालके सर्वोच्च न्यायालयका अटर्नी हूँ और ट्रान्सवालके ब्रिटिश भारतीय संघ (ब्रिटिश इंडियन असोसिएशन) का अवैतनिक सहायक मन्त्री भी हूँ। एशियाई जातियोंके स्वेच्छया पंजीयन (रजिटेशन) के, जो समझौता होनेके तुरन्त बाद पिछली १० फरवरीको शुरू हुआ था, आरम्भिक कालमें मुझे संघके सहायक मन्त्रीकी हैसियतसे स्थितिके सम्बन्ध में एशियाई रजिस्ट्रार श्री चैमनेसे विचार विमर्श करनेका बहुत बार मौका मिला था। श्री चैमनेने मुझसे रजिस्ट्रेशन दफ्तरमें ही कहा था कि कानून बेशक संसदका अधिवेशन आरम्भ होते ही रद कर दिया जायेगा, लेकिन शर्त यह है कि स्वेच्छया पंजीयन सन्तोषजनक रूपसे पूरा हो जाये। मैंने उस वक्त यह बात खास तौरसे नोट तो नहीं की, लेकिन मुझे अच्छी तरहसे याद है कि मैंने श्री चैमनेको उन दिनों अलग-अलग अवसरोंपर रजिस्ट्रेशन दफ्तरमें कई लोगोंसे ऐसी ही बात कहते सुना था।

हेनरी एस॰ एल॰ पोलक
मेरे सामने,
चास एच॰ स्मिथ
जस्टिस ऑफ द पीस

जोहानिसबर्ग में
आज ९ सितम्बर १९०८ को घोषित