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परिशिष्ट १४

गांधीजीको लॉर्ड ऍम्टहिलका पत्र

गोपनीय

मिल्टन अर्नेस्ट हॉल
बेडफोर्ड
अगस्त ३, १९०९

प्रिय श्री गांधी,

हाउस ऑफ़ लॉड्सका कामकाज कुछ देरके लिए बन्द है और मैं इस अवकाशका उपयोग करके आपको चन्द पंक्तियाँ लिख रहा हूँ। पहले तो मैं आपको आपके २९ जुलाईके पत्रके लिए और आपके "संक्षिप्त विवरण" की नकलके लिए—जिसे आपने मेरे पास इतनी तत्परतासे तत्काल भेज दिया—धन्यवाद देता हूँ। प्रस्तुत अवसरपर आप मेरे मार्गदर्शनके अनुसार चलना चाहेंगे, इस बातकी सूचना देते हुए आपने मुझे जो अनेक तार भेजे, उनके लिए भी मैं आपका बहुत कृतज्ञ हूँ। मुझे भय है कि आपको ऐसा लगता होगा कि मैं बेकार समय गँवा रहा हूँ, किन्तु असलमें ऐसा नहीं है। अधिकारी लोग दक्षिण आफ्रिका विधेयक और साम्राज्यको सैनिक सुरक्षा (इम्पीरियल डिफेन्स) के सवालको लेकर व्यस्त हैं ही, इसके सिवा दलके राजनीतिक कार्यका बोझ भी है; अतः मुझे उनकी सुविधाकी प्रतीक्षा करनी पड़ती है। इस बीचमें, जब भी मुझे मौका मिलता है, मैं पत्र लिखकर या बातचीतके द्वारा परिस्थितिको प्रभावित करने की कोशिश कर रहा हूँ। अब आपके तारीख २९ के पत्रके बारेमें: इसमें बाकी तो सब बिल्कुल स्पष्ट है; एक ही मुद्दा ऐसा है जिसे आप थोड़ा और स्पष्ट करें तो मुझे खुशी होगी। आपने मुझे यह तो साफ-साफ कहा है कि आपको भारतके राजद्रोहात्मक आन्दोलनकारियोंसे कोई आर्थिक सहायता नहीं मिलती, किन्तु आपने मेरे इस प्रश्नका (मेरा खयाल है, मैंने यह प्रश्न किया था) जवाब नहीं दिया कि क्या वे आपको किसी भी तरहकी सहायता आदि दे रहे है। मैं चाहता हूँ कि मैं इस आरोपका—जिसमें मैं स्वयं विश्वास नहीं करता—बलपूर्वक खण्डन कर सकूँ और यह कह सकूँ कि आपके अनाक्रामक प्रतिरोधके आन्दोलन के चलते रहनेका, भारतमें जो भी कहा रहा है या किया जा रहा है, उससे कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। आपके खिलाफ इससे उलटी बात कही जा रही है और स्वाभाविक है कि मैं इस आरोपका खण्डन वैयक्तिक विश्वाससे नहीं, बल्कि ज्यादा प्रभावपूर्ण प्रमाणोंके बलपर करना चाहता हूँ।

आपने उक्त "विवरण" पर टिप्पणी लिखी है कि वह "असंशोधित प्रूफ" है, अतः मैं चन्द सुझाव देनेका साहस करता हूँ।


पैरा १५: पहले दो वाक्योंके सिलसिलेमें मैं यह सुझाना चाहता हूँ कि आप परिशिष्टके रूपमें युद्धसे पूर्वकी और युद्धके बादकी स्थितिपर श्री रिचके द्वारा तैयार किया गया तुलनात्मक विवरण दें। सन् १८८५ के कानून ३ के प्रभावके सम्बन्ध में कुछ संक्षिप्त स्पष्टीकरण दिया जाना चाहिए।
पैरा १७: अन्तिम वाक्यसे पहलेके एक वाक्यमें जो-कुछ कहा जा रहा है, उसे थोड़ा बढ़ाकर स्पष्ट कर देना चाहिए। यह स्पष्ट कर देना ठीक होगा कि शिनाख्तकी पाँच अँगुलियोंकी छापवाली पद्धति, जो भारतमें अपराधियों की शिनाख्त तक ही सीमित है, जान-बूझकर अपनाई गई थी, यद्यपि सर ई॰ हेनरीने अपनी रिपोर्टमें यह कहा था कि केवल अँगूठोंकी छाप काफी है।
पैरा २०: मुझे लगता है कि इस बातको स्पष्ट कर देना अच्छा होगा कि एशियाई कानून और प्रवासी [प्रतिबन्धक] कानून, दोनोंको मिला देनेसे सम्पूर्ण प्रवेश निषेधकी स्थिति कैसे पैदा हो गई है।