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परिशिष्ट

हमारी मान्यता है कि ब्रिटिश भारतीयोंका यह संघर्ष न्यायसंगत है और उनके जातीय सम्मानकी रक्षाके लिए है।

हम लोग इस तथ्य से अवगत हैं कि लगातार जेल जानेवाले भारतीय शपथवद्ध हैं कि जिन शिकायतों के कारण ऐसी शपथ लेनी पड़ी है वे जबतक दूर नहीं होतीं तबतक वे ट्रान्सवालकी संसद द्वारा बनाये गये एशियाई अधिनियमको स्वीकार नहीं करेंगे।

हमें लगता है कि अपने बेटों, पतियों या पिताओंको उनके दायित्व निर्वाहमें प्रोत्साहित करना हमारा कर्तव्य है।

उपर्युक्त कारणोंसे इसमें से आपकी अनेकोंको न केवल विछोहका दुःख, बल्कि अन्न-वस्त्रका संकट भी सहना पड़ा है। संघर्ष के दौरान अनेक भारतीय परिवार कंगाल बन गये हैं।

हम लोगोंको मालूम है कि ब्रिटिश संविधानके अन्तर्गत आप कष्ट उठानेवालों के पक्ष में सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकतीं। किन्तु आपकी प्रार्थिकाएँ अपना मामला आदरपूर्वक आपके सामने इस आशासे रख रही हैं कि शायद आप एक माता या पत्नी होनेके नाते [हम] माताओं या पत्नियोंके प्रति करुणाकी भावनासे गैर-सरकारी तौरपर अपने प्रभावका उपयोग और एक अत्यन्त दुःखद परिस्थितिका अन्त करनेमें सहायता कर सकें।

कष्ट भोगनेवालोंकी माँग यह है कि वह कानून रद कर दिया जाये जिसकी जरूरत अब सरकारको नहीं है; और उपनिवेशके प्रवासी कानूनमें जो जाति-सम्बन्धी प्रतिबन्ध है वह हटा दिया जाये, ताकि उच्चतम शिक्षा-प्राप्त भारतीयों के लिए वैसी ही शर्तोंपर उपनिवेश में प्रवेश करना सम्भव हो सके जैसी अन्य प्रवासियोंके लिए है।

हम आदरपूर्वक आशा करती है कि हमारी नम्र प्रार्थनापर आप विचार करनेकी कृपा करेंगी।

और आपके इस न्याय तथा दयाके कार्यके लिए आपकी प्रार्थिकाएँ सदैव दुआ करेंगी, आदि।

[अंग्रेजीसे]
इंडियन ओपिनियन, ३-७-१९०९

(२) प्रार्थनापत्र: दादाभाई नौरोजीको

सेवामें


माननीय दादाभाई नौरोजी


महोदय,

ट्रान्सवालमें रहनेवाले हम नीचे हस्ताक्षर करनेवाले ब्रिटिश भारतीय आपको भावी भारतीय राष्ट्रका पिता मानकर आपकी सेवामें इस उपनिवेश में चलनेवाले अपने महान संघर्षके सम्बन्ध में यह निवेदन कर रहे हैं। हमारी यह अपील आपके द्वारा सम्पूर्ण भारतसे है।

हम इस संघर्षका इतिहास न बताकर केवल वर्तमान स्थितिका ही उल्लेख करेंगे।

ट्रान्सवालवासी भारतीयोंने १९०७ के एशियाई पंजीयन अधिनियम (एशियाटिक रजिस्ट्रेशन ऐक्ट) को रद करनेकी माँग की है, ताकि शैक्षणिक योग्यता प्राप्त भारतीय, उनकी संख्या कितनी ही कम क्यों न हो, चाहे प्रतिवर्ष छः ही हो, उन्हीं शर्तोंपर ट्रान्सवालमें प्रवेश कर सकें जो अन्य प्रवासियोंके लिए हों। आजकी स्थितिके अनुसार पंजीयन अधिनियम और उपनिवेशके प्रवासी अधिनियमके अन्तर्गत जबतक कोई भारतीय इस उपनिवेशका पूर्व-अधिवासी न हो, यहाँ नहीं आ सकता। इस प्रकार उपनिवेशके ये कानून रंग-भेदमूलक प्रतिबन्ध लगानेवाले हैं। किसी अन्य ब्रिटिश उपनिवेश में ऐसे कानून नहीं हैं। अत: भारतीयोंने उपनिवेशके पंजीयन कानूनोंको स्वीकार न करने और जबतक जातीय कलंक मिट न जाये तबतक कैद तथा अन्य कष्ट बर्दाश्त करनेका सार्वजनिक रूपसे गम्भीर निश्चय किया है।