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राँदेरीका मुकदमा

सुपरिंटेंडेंट जे० जी० वरनॉनने कहा कि मैंने १५ अगस्तको अभियुक्तसे वह अधिकार-पत्र दिखानेके लिए कहा जिसके बलपर वह एशियाई पंजीयक (रजिस्ट्रार ऑफ एशियाटिक्स् ) द्वारा चले जानेकी चेतावनी दी जानेके बावजूद ट्रान्सवालमें ठहरा हुआ है । उसने जवाब दिया कि उसके पास कोई अधिकारपत्र नहीं है, किन्तु उसने उपनिवेशमें रहने के लिए एक और अर्जी दी है । निर्देश मिलनेपर मैंने अभियुक्तको गिरफ्तार कर लिया ।

प्रिटोरिया स्थित एशियाई पंजीयक कार्यालयके [कर्मचारी ] जेम्स कोडीने कहा कि १० मार्चको एशियाई पंजीयकने अभियुक्तको तीन महीने तक ट्रान्सवालमें रहनेका एक अस्थायी अनुमतिपत्र दिया था । अभियुक्तने ९ जूनको इसकी अवधि बढ़ाई जानके लिए अर्जी दी, जो पत्र द्वारा २४ जुलाईको अस्वीकृत कर दी गई ।

न्यायाधीश : आपने उसे तबतक ठहरनेकी इजाजत दी थी ?

गवाह : उसने कुछ कारण बताये थे कि वह क्यों ठहरना चाहता है । हमने उन कारणोंकी जाँच की, और तय किया कि अनुमतिपत्र (परमिट) नहीं देना चाहिए ।

श्री गांधी : क्या आपको मालूम है कि अभियुक्त के पिता जोहानिसबर्ग में हैं ?

गवाह : मैं निश्चित रूपसे नहीं कह सकता ।

[गांधीजी :] मुझे पता चला है कि आपका इरादा अनुमतिपत्रको अवधि समाप्त होनेपर ट्रान्सवालसे चले जाने, और प्रवासी प्रतिबन्धक अधिनियम (इमिग्रेशन रेस्ट्रिक्शन ऐक्ट) के अन्तर्गत फिर प्रवेश करनेका था ?

देरी गवाहके कटघरे में खड़े हुए ।

[अभियुक्त:] हाँ, किन्तु सौभाग्यवश मुझे यहीं गिरफ्तार कर लिया गया ।

अभियुक्तने एक छोटा-सा वक्तव्य देनेकी अनुमति माँगी, किन्तु न्यायाधीशने बताया कि उसकी पैरवी एक अत्यन्त योग्य वकील कर रहे हैं ।

[ गांधीजी : ] इससे कोई अन्तर नहीं पड़ता ।

और अभियुक्त कैदियोंके कटघरे में वापस चला गया ।

सरकारी वकीलने कहा कि अभियुक्तकी स्थिति ऐसी है, मानो अदालतने उससे सात दिनके भीतर उपनिवेशसे जानके लिए कहा हो और उसने वैसा करनेसे इनकार कर दिया हो ।

न्यायाधीशने अभियुक्तको एक मासकी सख्त कैदकी सजा दे दी ।

[अंग्रेजीसे]

इंडियन ओपिनियन, १२-९-१९०८

 

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