पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 9.pdf/६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१३. नेटालकी सभाएँ

नेटालमें सार्वजनिक सभाएँ हो रही हैं । उनमें प्रस्ताव भी पास किये जा रहे हैं । सरकारको अर्जियाँ भेजी जायेंगी । यह सब ठीक हो रहा है । ऐसा करनेकी आवश्यकता है । किन्तु नेटालके भारतीयोंको यह याद रखना है कि उनमें जबतक अर्जियोंके मुताबिक चलनेकी शक्ति नहीं है, तबतक अर्जियां निरर्थक हैं । हमें धीरे-धीरे सभी जगह ऐसा ही अनुभव हो रहा है ।

हमारी शक्ति सत्याग्रह है, और नेटालमें सत्याग्रह यह है कि प्रत्येक भारतीय बिना परवाना (लाइसेंस) व्यापार करनेका निश्चय करे । यह तो हम जानते हैं कि नये विधेयक' (बिल) पास नहीं होंगे; किन्तु आवश्यक यह है कि पुराना कानून १८९७ का कानून किया जाये । यदि भारतीयों में सचमुच ही शक्ति आ गई हो, तो उन्हें ऐसी अर्जी देनी चाहिए कि जबतक १८९७ के कानून के अन्तर्गत [ प्रशासनिक निर्णयोंके विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में ] अपील करने का अधिकार नहीं दिया जाता, पुराने परवानोंकी रक्षा नहीं की जाती और गिरमिटियों- पर से तोन-पौंडो कर नहीं हटाया जाता, तबतक हम परवानोंके बिना व्यापार करनेका निश्चय करते हैं । "

इससे दोनों अर्थ सिद्ध होते हैं । स्वार्थ भी और परमार्थ भी; स्वार्थ इस प्रकार कि परवानेकी परेशानी खत्म हो जायेगी; और परमार्थ इस प्रकार कि गरीब गिरमिटियोंपर से कर हट जायेगा और उनका हृदय आशिष देगा । यदि भारतीय समाज प्रतिज्ञा कर ले कि जबतक गिरमिटियोंके कष्ट दूर नहीं होते, तबतक वह भी सुख से नहीं बैठेगा, और कष्ट उठायेगा तो इसका अर्थ बहुत गम्भीर होगा । यदि भारतीय समाज सच्चे मनसे ऐसा करे तो यह राज्य मिल जाने के समान होगा । ऐसा करनेका अर्थं स्वराज्य माना जायेगा ।

और सभी देख सकते हैं कि ऐसा करने के सिवा कोई रास्ता भी नहीं है । किन्तु यह पूछा जा सकता है कि सब लोग ऐसा कब करेंगे और कब हमारी जीत होगी । ऐसा पूछना गलत होगा । बड़े काम करनेवाले लोग आरम्भ में थोड़े ही हुआ करते हैं । हजरत मुहम्मद पहले मुट्ठी- भर व्यक्तियोंको लेकर जूझे । ईसा मसीहके पक्ष में पहले दो-चार व्यक्ति ही थे । हैम्पडननें अकेले ही जहाज कर देतेसे इनकार किया था । उसके मनमें यह विचार भी न आया कि लोग ऐसा करेंगे या नहीं । स्वर्गीय श्री ब्रेडलॉने" सारी लोकसभाको हिला दिया था । भारतके पितामह, दादाभाई पचास साल पहले अकेले ही थे । प्रारम्भिक वर्षोंमें उन्होंने अथक परिश्रम किया । उनकी आवाज में आवाज मिलाकर यह कहनेवाले बहुत ही थोड़े लोग थे कि ब्रिटिश

१. नेटाल परवाना-विधेयक (नेटाल लाइसेंसिंग बिल); देखिए खण्ड ८, पृष्ठ २३०-३१ ।

२. विक्रेता परवाना कानून, ( डीलर्स लाइसेंसेज ऐक्ट ); देखिए खण्ड २, पृष्ठ ३८४-८६ ।

३. यह व्यक्तिकर गिरमिटिया भारतीयोंपर गिरमिटकी अवधि समाप्त होनेपर लगाया जाता था ।

४. गांधीजीने बराबर हैम्पडनका हवाला एक आदर्श सविनय प्रतिरोधीके रूपमें दिया है; देखिए खण्ड ५, पृष्ठ ४८८-८९ ।

५. देखिए खण्ड ८, पृष्ठ ८५ की पाद-टिप्पणी ।

Gandhi Heritage Porta