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परिशिष्ट


हमें ट्रान्सवाल सरकारका उत्तर अभीतक नहीं मिला है, लेकिन कलकी बहससे पहले आ जानेकी आशा है। मुझे मालूम हुआ है कि लॉर्ड ऍम्टहिल केवल बातचीतके प्रश्नको उठाना चाहते हैं।

ह॰

[अंग्रेजीसे]
कलोनियल ऑफिस रेकर्ड्स २९१/१४१

परिशिष्ट ३३

उपनिवेश कार्यालयकी टिप्पणी

[लन्दन
नवम्बर ९, १९०९]

देखिए आजका 'टाइम्स', पृष्ठ ५, शीर्षक "वार्ता विफल [१]—हमें ट्रान्सवालसे मालूम करना चाहिए कि उनका क्या करनेका इरादा है। मैं मसविदा विचारार्थ प्रस्तुत करता हूँ।

यह सचमुच ही बहुत सख्त पत्र है। यदि श्री गांधीका आशय वही है जो वे कहते हैं—अर्थात यह कि भारतमें होमरूलका कोई औचित्य नहीं है—तो वे ठीक इन्हीं शब्दोंमें तो नहीं, पर घुमाकर लगभग यही बात कहते हैं। कानूनके सम्मुख समानता प्राप्त करनेमें उनके दावेके औचित्यसे हम इनकार नहीं कर सकते। वस्तुतः यह तो एक बुनियादी सिद्धान्त है। जिसके विषय में हमें कोई शंका नहीं है, ऐसे उस सिद्धान्तको मान्य करानेके लिए बस जोर डालनेसे हम इनकार करते हैं, क्योंकि इस समस्याका हल जिन लोगोंके हाथमें है उनपर अपनी राय थोपनेका हमें कोई अधिकार नहीं है। जब किसी उपनिवेशको उत्तरदायी शासन सौंपा जाता है, तब ऐसे प्रश्नोंके निर्णयका अधिकार भी अनिवार्यतः उपनिवेशकी सरकार और संसदके हाथों में चला जाता है, और यद्यपि ट्रान्सवाल सरकारने तफसीलके मामले में हमारी बात स्वीकार करनेकी तत्परता प्रकट की है, तथापि सिद्धान्तके प्रश्नपर उन्होंने जैसा आग्रह दिखाया है (जिसका कारण निस्सन्देह गोरों और रंगदार लोगों में समानताके प्रति डच लोगोंकी प्रसिद्ध कारण है) वह ठीक भारतीयों के आग्रह-जितना ही। यदि वे हमारा सिद्धान्त स्वीकार नहीं करते, तो साम्राज्यकी वर्तमान मर्यादाओंको ध्यान में रखते हुए हम उन्हें विवश नहीं कर सकते।

सम्भवतः कुछ इसी प्रकारका एक उत्तर प्रकाशित करना वांछनीय होगा।

ह॰ एच॰ एल॰

"रंगभेद-मूलक प्रतिबन्ध" शब्दोंका प्रयोग करनेमें श्री गांधीका लक्ष्य दक्षिण आफ्रिका विधेयकपर संसद में होनेवाली बहस है, और महामहिम [सम्राट] की सरकारकी स्थिति दोनों मामलोंमें एक ही है, अर्थात् वह स्थानीय दृष्टिकोणको, जो बहुत दृढ़ है, स्वीकार करनेको विवश हो गई है।

श्री पोलकके नाम श्री गांधीके तारमें जो बात कही गई है (और जिसे 'टाइम्स'ने स्थितिका संक्षिप्त विवरण प्रकाशित करते हुए उद्धृत किया है) वह निःसन्देह लॉर्ड क्रू के साथ [उनकी] भेंट और हमारे ३ नवम्बरके पत्रपर आधारित है।

पत्रका उत्तर देनेसे पहले हमें तारका जवाब आनेकी प्रतीक्षा करनी चाहिए।

ह॰ एच॰ डब्ल्यू॰ जे॰

  1. टाइम्स में मूल अंग्रेजी शीर्षक था "फेल्योर ऑफ़ द नेगोसिएशन्स"।