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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

(२) गांधीजीके नाम लॉर्ड ऍम्टहिलका पत्र

गोपनीय

४१, फैटन स्क्वेयर, एस॰ डब्ल्यू॰
नवम्बर ५, १९०९

प्रिय श्री गांधी,

आपके इसी ४ तारीखके पत्रमें लिखी बातोंसे मुझे बहुत सदमा पहुँचा है। उपनिवेश कार्यालयके पत्रसे प्रकट होता है कि आपने लॉर्ड क्रू के साथ अपनी भेंटसे जो खयाल बनाया वह बिल्कुल गलत था, या लॉर्ड क्र ने आपसे जो कुछ कहा उसके बारेमें उनकी याददाश्त कसूरवार है।

अगर पहली बात ठीक हो तो बहुत-सा वक्त फिजूल बरबाद हो गया है; अगर दूसरी बात हो तो उसका कोई इलाज ही नहीं है, क्योंकि इसमें सवाल आपकी बातके मुकाबले लॉर्ट क्रू की बातका है। इन स्थितियों में आप जो जवाब देना चाहते हैं उसे भेजनेमें मुझे कोई आपत्ति नहीं दिखाई देती। वह शोभास्पद और संयत तो है ही। अगर आपकी स्थिति में होता और अपनी बातका मुझे निश्चय होता तो मैं खुद इससे ज्यादा कहता। अगर हो सकेगा तो हम सोमवार को इस मामले में बातचीत करेंगे।

आपका विश्वस्त,
ऍम्टहिल

हस्तलिखित मूल अंग्रेजी प्रतिकी फोटो-नकल (एस॰ एन॰ ५१६३) से।

परिशिष्ट ३२

उपनिवेश कार्यालयकी टिप्पणी

[लन्दन
नवम्बर १५ १६, १९०९]

इसमें नई बात कम, या कुछ भी नहीं है। यह साररूपमें वही है जिसे श्री गांधी हर जगह (जैसे, १३ नवम्बर को वेस्टमिंस्टर पैलेस होटलकी बैठक में) कहते आ रहे हैं और जो संक्षेप में उनके इस कथनमें आ गई है कि ब्रिटिश भारतीय प्रवेशके मामले में समानता चाहते हैं, भले ही कभी एक भी आदमी प्रवेश न करे। (सी॰ एफ॰ ३६६३१)

यह एक जोरदार मामला है और भलीभाँति पेश किया गया है। इसलिए जब संघ सरकारका संगठन अच्छी तरह हो जायेगा तब, मेरा खयाल है, हमें नेटाल और आस्ट्रेलियाके कानूनके आधारपर एक प्रवासी कानून बनवानेका प्रयत्न करना होगा। समय आनेसे पहले गवर्नर जनरलको इसके अनुसार निर्देश दे दिया जाना चाहिए। लेकिन फिलहाल हमें ट्रान्सवाल सरकार जो रियायतें देती है, उन्हें ले लेना चाहिए। (३६६३१ के तारका उत्तर अभी नहीं मिला है)।

लॉर्ड क्रू कल दोपहरसे पहले इसे देख लें।

ह॰ एच॰ एल॰