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तारीखवार जीवन-वृत्तान्त
अप्रैल १: काछलियाके साहूकारोंकी तीसरी बैठकमें देनदारीका पूरा-पूरा भुगतान किया गया।
अप्रैल ३: जर्मस्टनकी महिलाओंने अपना संघ स्थापित किया।
'इंडियन ओपिनियन' के संवाददाताने सूचना दी कि वे सत्याग्रही, जो नेटालके अधिवासी हैं और जिनको निर्वासनका आदेश हुआ है, सिर्फ फोक्सरस्टकी सीमाके पार छोड़ दिये जायेंगे।
बारबर्टनकी सभामें निर्वासनकी नीतिका विरोध किया गया और गांधीजीने कष्टों और अपमानोंको जिस साहसके साथ सहन किया, उसकी सराहना की गई।
अप्रैल ५ के पहले: ब्रिटिश भारतीय संघ और ह० इ० अंजुमनने गांधीजी तथा अन्य लोगोंको धर्म और देशभाइयोंके लिए जेल जानेपर बधाई दी और संघर्ष जारी रखनेका निर्णय किया।
अप्रैल ६: ब्रिटिश भारतीय संघने हाई कमिश्नरको पत्र लिखा, जिसमें उसने संघके निवेदनपत्रको तार द्वारा उपनिवेश मन्त्रालयके पास न भेजनेके लिए उसकी निन्दा की। ट्रान्सवालके चार भारतीय निर्वासित किये गये तथा बारबर्टनमें १० अन्य निर्वासित किये जानेकी प्रतीक्षामें।
अप्रैल ७: पोलकने हमीदिया अंजुमनके हालमें जोहानिसबर्ग के हिन्दुओंकी एक सभामें डीपक्लूफ और हाइडेलबर्गकी जेलोंमें बन्द सत्याग्रहियोंकी स्थितिके बारेमें बताया। ब्रिटिश भारतीय संघने कार्यवाहक जेल-निदेशकको पत्र लिखकर बन्दियोंके साथ होनेवाले दुर्व्यवहारकी शिकायत की।
नेटालके प्रधान मंत्रीने संसदमें इस बातको गलत बताया कि गिरमिटिया एशियाई मजदूरोंका प्रवास जारी रखनेके लिए नेटाल सरकारने अन्य उपनिवेशोंसे समझौता किया है।
अप्रैल ११: जोहानिसबर्ग में भारतीयोंकी आम सभा हुई, जिसमें बोथा द्वारा लॉर्ड क्रू के समक्ष दिये गये इस वक्तव्यका खण्डन किया गया कि बहुत से एशियाई अपनी वर्तमान स्थितिसे सन्तुष्ट हैं। सभाने साम्राज्यीय सरकारसे अनुरोध किया कि वह हस्तक्षेप करके संघर्षको समाप्त करवाये।
अप्रैल १२: गांधीजीको हथकड़ी पहनाकर पैदल ले जानेके बारेमें ब्रिटेनकी लोकसभामें प्रश्न उठाया गया।
२९ चीनी सत्याग्रहियोंको, जिनपर अँगूठोंकी छाप देनेसे या हस्ताक्षर करनेसे इनकार करनेका आरोप था, बरी कर दिया गया।
अप्रैल १४: डॉ॰ अब्दुर्रहमानने केप टाउनमें आफ्रिकी राजनीतिक संगठनके सातवें वार्षिक सम्मेलनका उद्घाटन किया।
१६ भारतीयोंको, जो जोहानिसबर्गके पुराने निवासी थे, डेलागोआ-बेके रास्ते निर्वासित करके भारत भेज दिया गया।
अप्रैल १७: 'इंडियन ओपिनियन' के संवाददाताने खबर दी कि गांधीजी प्रिटोरिया सेंट्रल जेलमें जेल विनियमोंके अन्तर्गत भारतीयोंके साथ वतनियों जैसा व्यवहार किये जानेके विरोध-स्वरूप पूरा भोजन नहीं ले रहे हैं, और उन्होंने तबतक घी लेनेसे इनकार कर दिया है, जबतक कि सभी भारतीय कैदियोंको घी नहीं दिया जाता।
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