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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय
मार्च २४ : ईस्ट लंदनके ब्रिटिश भारतीय संघकी सभाने ट्रान्सवाल सरकारको निर्वासन-नीतिकी निन्दा की।
मार्च २५: हमीदिया अंजुमनके हालमें भारतीय महिलाओंकी सभा हुई जिसमें श्रीमती थम्बी नायडू, श्रीमती पोलक और कुमारी इलेसिनने भाषण दिये तथा भारतीय महिला समाजकी स्थापना की गई।
ईस्ट लन्दनके ब्रिटिश भारतीय संघने हाई कमिश्नर, उपनिवेश कार्यालय और भारतके वाइसरॉयके पास भारतीयोंके साथ किये जानेवाले दुर्व्यवहारके प्रति विरोध पत्र भेजे। लॉर्ड सभामें लॉर्ड ऍम्टहिलके प्रश्नका उत्तर देते हुए लॉर्ड क्रू ने ट्रान्सवालकी निर्वासन
-नीतिका समर्थन किया।
सूरती मसजिदके मौलवी अहमद खाँसे श्री जॉर्डनकी अदालतमें जिरह की गई। सूचना मिली कि प्रिटोरियामें पंजीयनका काम ठप है।
मार्च २६: केप टाउनमें भाषण देते हुए श्राइनरने रंग-भेदको संघके विधानका कलंक कहा। पोर्ट एलिजाबेथके ब्रिटिश भारतीय संघ द्वारा १७ मार्चको भेजे गये तारके जवाब में भारत सरकारने आश्वासन दिया कि वह ट्रान्सवालमें ब्रिटिश भारतीयोंके प्रति होनेवाले
व्यवहारको सुधारनेके प्रयत्न करती रहेगी; साथ ही यह भी कहा कि कानूनका उल्लंघन करनेकी सजामें हस्तक्षेप करना उसके वशकी बात नहीं है।
मार्च २७: जोहानिसबर्ग, वेरीनिगिंग और फोक्सरस्टमें और अधिक लोगोंके गिरफ्तार किये जाने, सजा दिये जाने और निर्वासित किये जानेका समाचार मिला।
खबर मिली कि ६५ कैदियोंको खानोंमें काम करनेके लिए फोक्सरस्टसे हाइडेलबर्ग ले जाया गया।
मार्च २८: ब्रिटिश भारतीय संघको सभामें लॉर्ड क्रू के उस भ्रामक वक्तव्यके प्रति विरोध प्रकट किया गया, जो उन्होंने भारतीयोंको डेलागोआ-बेके रास्ते ट्रान्सवालसे निर्वासित करनेके सम्बन्धमें संसदमें दिया था।
दिलदारखाँ ब्रिटिश भारतीय संघके कार्यकारी अध्यक्ष चुने गये।
सत्याग्रहियोंके साथ ट्रान्सवाल सरकारके दुर्व्यवहारके प्रति हमीदिया इस्लामिया अंजुमन द्वारा विरोध प्रकट करनेका निश्चय।
मार्च २९: तीन महीने बाद जेलसे छूटनेपर थम्बी नायडू तथा अन्य लोगोंका ब्रिटिश भारतीय संघ द्वारा अभिनन्दन १५० से अधिक भारतीयोंके अभीतक जेलमें होनेकी खबर।
शेलत और १३ अन्य सत्याग्रही बारबर्टनमें रिहा किये गये, लेकिन निर्वासनके लिए पुर्तगालियोंके साथ प्रबन्ध होने तक उन्हें रोक रखा गया।
ट्रान्सवाल गवर्नरने उपनिवेश-मन्त्रीको सूचित किया कि पुर्तगाली अधिकारियोंने भारतीयोंको अपने सामान्य प्रवासी विनियमोंके अधीन निर्वासित किया।
ब्रिटिश भारतीय संघने ९ सितम्बर, १९०८ को जो प्रार्थनापत्र दिया था, उसके उत्तरमें ट्रान्सवालके गवर्नरने उपनिवेश मन्त्रीका जवाब संघको भेजा। कहा गया कि ट्रान्सवाल सरकार पंजीयन अधिनियम रद नहीं करना चाहती और साम्राज्यीय सरकार उसे रद
करवानेके लिए दबाव डालनेकी स्थितिमें नहीं है। प्रतिवर्ष ६ शिक्षित भारतीयोंके प्रवेशके सवालपर दोनों पक्षोंमें मतभेद केवल प्रवेशके तरीके और नियमको लेकर है।